Tue, 16 Sep 2025 15:52:13 - By : Garima Mishra
वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की है। संस्थान के बाल रोग विभाग ने एक 9 वर्षीय बालक का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट कर उसकी जिंदगी को नया जीवनदान दिया है। यह बालक लंबे समय से सीवियर एप्लास्टिक एनीमिया नामक दुर्लभ और घातक रक्त विकार से जूझ रहा था। इस रोग में अस्थिमज्जा नई रक्त कोशिकाओं का निर्माण बंद कर देती है, जिसके कारण मरीज को लगातार संक्रमण, थकान, खून की कमी और अचानक मृत्यु का खतरा बना रहता है। ऐसे मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही एकमात्र प्रभावी इलाज माना जाता है।
यह बच्चा वाराणसी का ही निवासी है और कई महीनों से गंभीर हालत में इलाज करा रहा था। उसे बार बार खून और प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती थी, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा था। ऐसे समय में संस्थान के डॉक्टरों ने सामूहिक प्रयास कर यह जटिल सर्जरी की और सफलता हासिल की।
इस प्रक्रिया का नेतृत्व बीएचयू के विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों की टीम ने किया। प्रमुख टीम में प्रोफेसर विनीता गुप्ता, डॉ. प्रियंका अग्रवाल, डॉ. संदीप कुमार, डॉ. ईशान कुमार, प्रो. नेहा सिंह, डॉ. नवीन और डॉ. चंद्रदीप शामिल रहे। इसके अलावा ब्लड बैंक के तकनीशियन, जूनियर रेजिडेंट और नर्सिंग स्टाफ ने भी इस जटिल प्रक्रिया को सफल बनाने में अहम योगदान दिया।
डॉक्टरों के अनुसार ट्रांसप्लांट से पहले रोगी की स्थिति अत्यंत नाजुक थी और लगातार इलाज के बावजूद उसका शरीर ठीक नहीं हो पा रहा था। सावधानीपूर्वक निगरानी, आधुनिक चिकित्सा उपकरण और टीम के समर्पित प्रयासों के कारण यह बोन मैरो ट्रांसप्लांट सफल हुआ। फिलहाल बच्चे की हालत स्थिर बताई जा रही है और वह तेजी से स्वस्थ हो रहा है। डॉक्टरों की टीम उसकी नियमित निगरानी कर रही है।
बीएचयू में अब तक कुल 35 बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो चुके हैं, जिनमें से दो मामले एप्लास्टिक एनीमिया से जुड़े रहे हैं। यह उपलब्धि न केवल चिकित्सा विज्ञान संस्थान की विशेषज्ञता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्रों के लोगों को अब विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो रही हैं।
प्रोफेसर विनीता गुप्ता ने कहा कि यह सफलता सिर्फ एक मेडिकल उपलब्धि नहीं है, बल्कि टीम वर्क, संवेदनशीलता और तकनीकी दक्षता का नतीजा है। उन्होंने आगे बताया कि संस्थान का लक्ष्य है कि थैलेसीमिया मेजर, म्यूकोमॉली सैकराइडोसिस और अन्य दुर्लभ आनुवंशिक व चयापचयी रोगों से पीड़ित बच्चों को भी इस सुविधा का लाभ मिल सके।
यह सफलता पूर्वांचल के गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आई है। अब उन्हें ऐसे महंगे और जटिल इलाज के लिए महानगरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, बल्कि घर के पास ही उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं मिल सकेंगी।