वाराणसी: घूसकांड में पकड़े गए डॉक्टर की हुई मौत, जेल में बिगड़ी तबीयत, अस्पताल ले जाते समय रास्ते में तोड़ा दम

बलिया के बांसडीह सीएचसी प्रभारी डॉ. वेंकेटेश्वर मौआर, जो घूसकांड में गिरफ्तार हुए थे, की वाराणसी जिला जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई, जिससे कई सवाल उठ रहे हैं।

Mon, 16 Jun 2025 21:02:12 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: बलिया जिले के बांसडीह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सक डॉ. वेंकेटेश्वर मौआर की मौत ने न सिर्फ चिकित्सा महकमे को झकझोर दिया है, बल्कि व्यवस्था पर भी कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सोमवार की सुबह वाराणसी जिला जेल से एक बेचैन करने वाली खबर आई। जहां जेल में बंद डॉक्टर वेंकेटेश (42 वर्ष) की अचानक तबीयत बिगड़ी और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो गई।

मूल रूप से बलिया निवासी डॉ. वेंकेटेश हाल ही में एक बड़े घूसकांड में रंगे हाथ पकड़े गए थे। एंटी करप्शन टीम ने उन्हें बीते 12 जून को अमृत फार्मेसी मेडिकल स्टोर के लाइसेंस से जुड़ी तीन लेटर जारी करने के एवज में तीन लाख रुपये की मांग करते समय रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। अजय तिवारी नामक मेडिकल स्टोर संचालक की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए टीम ने डॉ. वेंकेटेश को बांसडीह स्थित सीएचसी परिसर में ओपीडी के दौरान ही रिश्वत की रकम लेते हुए पकड़ लिया था। इस कार्रवाई के दौरान उनके हाथों पर केमिकल युक्त नोटों का प्रमाण भी मिला था, जिसे मौके पर मौजूद गवाहों के सामने धोकर परीक्षण किया गया था।

गिरफ्तारी के बाद डॉक्टर को वाराणसी जिला जेल में कोरंटीन बैरक में रखा गया था। जेल अधीक्षक सौरभ श्रीवास्तव के अनुसार, सोमवार को उनकी तबीयत बिगड़ी और बुखार जैसे लक्षण दिखाई दिए। जेल अस्पताल के चिकित्सक डॉ. हरिवंश ने तुरंत जांच कर प्राथमिक उपचार दिया और स्थिति नाजुक देख उन्हें मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा रेफर किया। लेकिन जेल से अस्पताल ले जाने के दौरान ही रास्ते में डॉक्टर वेंकेटेश ने अंतिम सांस ली।

उनका शव फिलहाल अस्पताल की मॉर्चरी में रखा गया है। परिजनों को सूचना दे दी गई है और प्रशासनिक स्तर पर पोस्टमार्टम की तैयारी की जा रही है। हालांकि यह मौत सामान्य है या किसी मानसिक, दवाबजनित कारण से हुई, इसे लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।

यह भी सामने आया है कि अतीत में भी डॉ. वेंकेटेश पर रिश्वत मांगने के आरोप लगे थे, लेकिन वे मामले सुलझते रहे और कभी खुलकर सामने नहीं आए। इस बार जब तीसरा लेटर जारी न करने की एवज में 20 हजार रुपये की मांग की गई, तब संचालक अजय तिवारी ने अंततः एंटी करप्शन से शिकायत की और एक पांच सदस्यीय टीम ने योजनाबद्ध तरीके से यह कार्रवाई की।

एक ओर जहां कानून व्यवस्था ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख दिखाया, वहीं दूसरी ओर एक सरकारी चिकित्सक की जेल में हुई अचानक मौत ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सिस्टम के भीतर की हकीकत कुछ और है?

क्या यह केवल स्वास्थ्य कारणों से हुई मृत्यु थी या जेल की हवा, मानसिक तनाव और सामाजिक शर्मिंदगी ने मिलकर एक जीवन को समय से पहले समाप्त कर दिया?
यह एक ऐसा सवाल है, जिसकी गूंज डॉक्टर वेंकेटेश की चुप हो चुकी सांसों के साथ भी जीवित रहेगी।

यह घटना उस कड़वी सच्चाई की तस्वीर है, जहां सत्ता, व्यवस्था और मानवता के बीच कहीं न कहीं इंसानियत की कीमत पर फैसले लिए जाते हैं। एक डॉक्टर, जो कभी जीवन बचाने की शपथ लेता है, वह अंत में खुद व्यवस्था की उलझनों में इस तरह दम तोड़ दे। यह किसी भी संवेदनशील नागरिक के लिए सोचने का विषय है।

अब सबकी निगाहें पोस्टमार्टम रिपोर्ट और उच्चस्तरीय जांच की ओर हैं, जो यह तय करेगी कि डॉ. वेंकेटेश की मौत सिर्फ एक संयोग थी या कोई गहरा संकेत।

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