बीएचयू आरएसएस भवन मामला: अदालत ने विश्वविद्यालय को जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आरएसएस भवन मामले में अदालत ने बीएचयू प्रशासन को 18 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया।

Mon, 10 Nov 2025 15:22:06 - By : Shriti Chatterjee

वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में आरएसएस भवन को पुनः संचालित करने की मांग से जुड़े मामले में सोमवार को सिविल जज जूनियर डिवीजन शमाली मित्तल की अदालत में सुनवाई हुई। अदालत ने विश्वविद्यालय प्रशासन को 18 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि प्रतिवादी संख्या दो यानी कुलपति अपने हलफनामे के साथ जवाब की प्रति वादी या उनके अधिवक्ता को उपलब्ध कराएं।

मामले की सुनवाई के दौरान वादी प्रमील पांडेय की ओर से अधिवक्ता गिरीश चंद्र उपाध्याय और मुकेश मिश्रा ने न्यायालय को बताया कि अब तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति न तो अदालत में उपस्थित हुए हैं और न ही वादी पक्ष को कोई प्रतिउत्तर प्राप्त हुआ है। इस पर अदालत ने विश्वविद्यालय को अंतिम अवसर प्रदान करते हुए स्पष्ट किया कि यदि इस तिथि तक उत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया तो मामला एकतरफा रूप से आगे बढ़ाया जाएगा। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 18 नवंबर निर्धारित की है।

मामले से जुड़ी पृष्ठभूमि के अनुसार, सुंदरपुर स्थित कौशलेश नगर कॉलोनी निवासी प्रमील पांडेय ने बीएचयू में स्थापित आरएसएस भवन को फिर से संचालित करने और वहां किसी प्रकार का अवरोध न होने देने की मांग को लेकर वाद दायर किया है। वादी का कहना है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वर्ष 1931 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा प्रारंभ हुई थी। इसके कुछ वर्ष बाद महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की पहल पर 1937-38 में दो कमरों का एक संघ भवन बनवाया गया, जो उस समय के प्रति कुलपति राजा ज्वाला प्रसाद के माध्यम से निर्मित हुआ था।

यह भवन विश्वविद्यालय के विधि संकाय परिसर में स्थित था और इसे संघ स्टेडियम के नाम से जाना जाता था। वादी के अनुसार, 22 फरवरी 1976 को आपातकाल के दौरान तत्कालीन कुलपति कालूलाल श्रीमाली के कार्यकाल में इस भवन को रातोंरात ध्वस्त करा दिया गया था। इसके बाद से यह स्थल निष्क्रिय पड़ा हुआ है। वादी का तर्क है कि यह भवन ऐतिहासिक और वैचारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था और इसकी पुनः स्थापना से संस्थान की परंपरागत पहचान और ऐतिहासिक मूल्यों का सम्मान बहाल होगा।

अदालत ने फिलहाल विश्वविद्यालय से औपचारिक उत्तर की प्रतीक्षा करने का निर्देश दिया है। आगामी सुनवाई 18 नवंबर को होगी, जब विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जवाब प्रस्तुत किए जाने की उम्मीद है। इस मामले को लेकर शिक्षण संस्थान के भीतर और बाहर दोनों स्तरों पर चर्चा जारी है, क्योंकि यह न केवल एक कानूनी विषय है बल्कि संस्थागत इतिहास और विचारधारात्मक विरासत से भी जुड़ा हुआ मामला माना जा रहा है।

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