Sat, 08 Nov 2025 14:45:55 - By : Palak Yadav
गुजरात के बनासकांठा जिले के 22 वर्षीय युवा धवल चौधरी इन दिनों देशभर में गोसेवा और राष्ट्रीय एकता का संदेश लेकर पैदल यात्रा कर रहे हैं। शुक्रवार रात वे वाराणसी के पिण्डरा ब्लाक के बाबतपुर पहुंचे, जहां उन्होंने मां चन्द्रिका देवी मंदिर प्रांगण में विश्राम किया। शनिवार की सुबह धवल ने अयोध्या की ओर अपनी अगली यात्रा का चरण आरंभ किया। उनकी यह यात्रा धार्मिक आस्था, सामाजिक समरसता और गोसेवा के प्रति जनजागरण का प्रतीक बन गई है।
धवल चौधरी ने यह यात्रा पिछले वर्ष 14 नवंबर 2024 को गुजरात के बनासकांठा जिले के बालमपुर गांव से शुरू की थी। तब से अब तक वह 11 ज्योतिर्लिंग और चार धाम की यात्रा पूरी कर चुके हैं। हर शहर और गांव में वे लोगों से मिलते हैं, संवाद करते हैं और उन्हें बताते हैं कि गोसेवा केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि मानवता की सेवा का एक रूप है। उनका अगला लक्ष्य नेपाल और भूटान जाकर वहां भी यह संदेश फैलाना है।
धवल चौधरी का जीवन इस यात्रा से पहले भी गायों की सेवा से जुड़ा रहा है। वे अपने गांव बालमपुर में अपने साथियों के साथ एक छोटी गौशाला चलाते हैं, जहां बीमार, असहाय और अपंग गायों की सेवा की जाती है। लैब टेक्नीशियन का कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने पारंपरिक नौकरी का रास्ता छोड़कर अपना जीवन गोसेवा और राष्ट्रीय एकता के लिए समर्पित कर दिया।
अपनी यात्रा के दौरान धवल कभी पैदल चलते हैं, तो कभी राहगीरों से लिफ्ट लेकर आगे बढ़ते हैं। उनका कहना है कि उनका उद्देश्य दूरी तय करना नहीं, बल्कि हर व्यक्ति तक यह संदेश पहुंचाना है कि समाज की शक्ति एकता और सेवा में है। वे मानते हैं कि अगर हर व्यक्ति अपने स्तर पर गोसेवा और सामाजिक सद्भाव के लिए थोड़ा भी योगदान दे, तो देश और अधिक सशक्त बन सकता है।
वाराणसी में प्रवास के दौरान धवल ने स्थानीय लोगों से संवाद किया और उन्हें बताया कि गायों की सेवा केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि पर्यावरण, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से भी गहराई से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि आज जब समाज विभाजन की मानसिकता से गुजर रहा है, तब एकता और करुणा का संदेश पहले से अधिक आवश्यक हो गया है।
धवल चौधरी की यात्रा अब अयोध्या की ओर बढ़ रही है। वे उम्मीद करते हैं कि इस यात्रा के दौरान उनसे जुड़ने वाले लोग भी आगे चलकर गोसेवा, स्वच्छता, और सद्भाव जैसे कार्यों में योगदान देंगे। रास्ते में जहां भी वे रुकते हैं, वहां स्थानीय लोग उनसे प्रभावित होकर उनके उद्देश्य से प्रेरित होते हैं।
उनकी यह यात्रा किसी धार्मिक आयोजन या संस्था द्वारा प्रायोजित नहीं है, बल्कि उनके अपने समर्पण और लोगों के सहयोग से आगे बढ़ रही है। उनका सफर यह दर्शाता है कि जब किसी के भीतर सेवा और एकता का भाव सच्चा हो, तो सीमाएं केवल मंजिल का हिस्सा बन जाती हैं।