Mon, 25 Aug 2025 10:00:38 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: मृत्यु और मोक्ष की नगरी काशी में आज का दिन विशेष है। गंगा के घाटों पर जलती चिताओं और राम नाम सत्य है की गूंज के बीच हर कोई उस शख्सियत को याद कर रहा है, जिसने इस परंपरा को जीवनभर निभाया और इसे नई पहचान दिलाई। पद्मश्री सम्मान से अलंकृत डोम राजा जगदीश चौधरी की पुण्यतिथि पर न सिर्फ वाराणसी बल्कि पूरा देश उनकी स्मृति में सिर झुका रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने आधिकारिक पोस्ट पर लिखा है, "मृत्यु को मुक्ति का माध्यम मानने वाली काशी की परंपरा के संवाहक, पद्मश्री डोम राजा जगदीश चौधरी जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि! उनका जीवन समरसता, सेवा और सनातन संस्कृति के प्रति समर्पण का प्रतीक है" मुख्यमंत्री के इस संदेश ने डोम राजा की उस अनूठी भूमिका को उजागर किया, जो उन्हें काशी की संस्कृति में अमर कर देती है।
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट, यह सिर्फ श्मशान घाट नहीं, बल्कि काशी की आत्मा हैं। यहां सदियों से डोमराजा परिवार का वर्चस्व रहा है। प्रोफेसर प्रवीण राणा बताते हैं कि अंतिम संस्कार में मुखाग्नि देने का अधिकार डोमराजा परिवार को पीढ़ियों से प्राप्त है। काशी में लगभग पाँच हजार लोग इस बिरादरी से जुड़े हुए हैं, जो आज भी मृत्यु को मोक्ष से जोड़ने वाली इस परंपरा को निभा रहे हैं।
पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने स्वयं को कालू डोम को बेच दिया था। तभी से यह परंपरा स्थापित हुई कि अंतिम संस्कार की अग्नि डोमराजा के हाथों से ही ली जाएगी। यही कारण है कि वाराणसी की पहचान में डोम बिरादरी और उनका दायित्व अटूट रूप से जुड़ा है।
जगदीश चौधरी का जीवन संघर्ष और सम्मान दोनों से भरा रहा। समाज के उपेक्षित वर्ग से आने के बावजूद उन्होंने अपनी भूमिका को गर्व और कर्तव्य समझकर निभाया। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रस्तावक बनने के बाद उन्होंने कहा था, पहली बार किसी राजनीतिक दल ने हमें यह पहचान दी है और वह भी खुद प्रधानमंत्री ने। हम बरसों से तिरस्कार झेलते आए हैं। अब हालात जरूर बदलेंगे। उनके शब्द उस पीड़ा और आशा का प्रतीक थे, जो पीढ़ियों से डोम समाज के साथ जुड़ी रही है।
पद्मश्री सम्मान उनके योगदान और समर्पण का प्रमाण था। उन्होंने घाटों की आग को कभी बुझने नहीं दिया। चाहे तपती दोपहर हो या अमावस्या की अंधेरी रात, उनकी बिरादरी हमेशा घाट पर मौजूद रहती, ताकि मृत्यु के बाद हर आत्मा को मुक्तिद्वार मिल सके।
आज उनकी पुण्यतिथि पर घाटों पर बहती गंगा मानो और भी गंभीर लग रही है। धधकती चिताओं की लपटें और गूंजता राम नाम सत्य है मानो यह संदेश दे रहा है कि डोम राजा जगदीश चौधरी भले ही भौतिक रूप से न हों, पर उनकी परंपरा और विरासत हमेशा जीवित रहेगी।