Wed, 26 Nov 2025 11:08:03 - By : Shriti Chatterjee
वाराणसी में आयोजित यूरोपीय साहित्यिक उत्सव ने इस बार साहित्यिक दुनिया में नई ऊर्जा और संवाद का मौका दिया। ऐतिहासिक एलिस बोनर संस्थान में हुए इस आयोजन का प्रबंधन यूरोपीय संघ राष्ट्रीय संस्कृति संस्थान द्वारा किया गया और इसी अवसर पर कला निवास के पुनरुद्धार की दसवीं वर्षगांठ भी मनाई गई। उत्सव में फ्रांस, स्विट्जरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल और स्पेन से आए पांच समकालीन लेखकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। साहित्यिक माहौल में उन्होंने अपनी रचनाओं का पाठ किया और पाठकों के साथ खुलकर बातचीत की, जिससे यह कार्यक्रम और अधिक जीवंत हो गया।
फ्रांस से आए युवा लेखक मोनोस ने अपनी साहित्यिक यात्रा और आध्यात्मिक अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि उनका लेखन पहचान और आध्यात्मिकता से गहरे रूप में जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि वह यह समझना चाहते हैं कि लोग अपनी आध्यात्मिक भावनाओं को किस तरह जीते और व्यक्त करते हैं। योग, ध्यान, प्रार्थना और संवाद जैसे कई रूप इस अभिव्यक्ति का हिस्सा बनते हैं। चर्चा के दौरान यह भी सामने आया कि यूरोपीय देशों में भारतीय लेखकों की पुस्तकें पहुंचने में अभी भी कठिनाई रहती है। विशेषज्ञों के अनुसार अरुंधति रॉय की अपनी मां पर आधारित स्मृतिशेष पुस्तक को लेकर यूरोप में उत्सुकता तो थी, लेकिन उपलब्धता सीमित रही। यूरोप में अधिकांश भारतीय किताबें वहीं के प्रवासी लेखकों या विदेश में रहने वाले भारतीयों द्वारा लिखी गई होती हैं, जबकि भारत में रहने वाले लेखकों की रचनाएं खासकर क्षेत्रीय भाषाओं में लिखी गई कम ही वहां पहुंच पाती हैं। प्रकाशन अधिकार, अनुवाद की कमी और वितरण व्यवस्था की सीमाएं इसके प्रमुख कारण बताए गए।
स्पेन से आई लेखिका मोनिका ने वाराणसी में अपने पूरे माह भर के अनुभव साझा किए। उन्होंने काशी के कई स्थानों का दौरा किया और बताया कि यहां की संस्कृति और संगीत पर वह एक किताब लिख रही हैं। मोनिका ने कहा कि कबीर के दोहे उन्हें गहराई तक छू गए और उन्होंने कबीर से जुड़े स्थानों का भी दौरा किया। उनके अनुसार काशी में रहकर जो कुछ सीखा और महसूस किया, उसे वह अपनी पुस्तक में समेटकर अपने देश तक पहुंचाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य अलग अलग देशों की संस्कृति, सभ्यता और कला का आदान प्रदान बढ़ाना है और ऐसे साहित्यिक आयोजनों से यह दिशा मजबूत होती है।