Wed, 22 Oct 2025 12:37:12 - By : Shriti Chatterjee
हाजीपुर: हाजीपुर क्षेत्र में केले की खेती किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मालभोग, चिनिया और आलपान जैसी प्रजातियों के माध्यम से क्षेत्र के किसान अपनी आजीविका चलाते हैं। लेकिन इस वर्ष लगातार बारिश और जलजमाव के कारण क्षेत्र के केले के बगानों को भारी नुकसान हुआ है।
वर्तमान समय में चेचर, कुतुबपुर, मधुरापुर, मथुरा, गोखुला और आसपास के गांवों में सैकड़ों एकड़ भूमि में केले के पौधे गिर गए हैं। खासकर आलपान किस्म के पौधे भारी नुकसान झेल रहे हैं। बिदुपुर, हाजीपुर प्रखण्ड और राघोपुर क्षेत्र के हजारों हेक्टेयर भूमि में केले की खेती व्यापक रूप से की जाती है, लेकिन प्राकृतिक आपदा ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया।
किसानों का कहना है कि केले की खेती अब घाटे का सौदा बन गई है। फसल उत्पादक लागत में वृद्धि, कीट व्याधियों का प्रकोप और बाजार की समस्याओं के कारण कई किसान धीरे-धीरे इस खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। इसके अलावा सरकार के द्वारा केले की फसल को फसल बीमा में शामिल न करने और फल संसाधन उद्योग की कमी ने समस्या और बढ़ा दी है। केवल हाजीपुर के हरिहरपुर में एक अनुसंधान केंद्र स्थापित है, लेकिन तकनीक का व्यापक उपयोग और अन्य उद्योग धंधे क्षेत्र में विकसित नहीं हुए हैं।
स्थानीय किसान और समाजसेवी सरकार से मांग कर रहे हैं कि केले की फसल को फसल बीमा में शामिल किया जाए और छठ पर्व से पहले आवश्यक आर्थिक मदद उपलब्ध कराई जाए। इस वर्ष जलजमाव और फसल नुकसान के कारण छठ पर्व पर केले की कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना है। स्थानीय बाजार में केले की कीमत वर्तमान में चार सौ से सात सौ रुपए प्रति घोड़ा तक पहुंच चुकी है। इससे पर्व में आने वाले श्रद्धालुओं को महंगा केला खरीदना पड़ सकता है।
किसानों और समाजसेवियों का यह भी कहना है कि फल संसाधन उद्योग और चिप्स एवं अन्य उत्पाद बनाने वाले उद्योगों की स्थापना क्षेत्र में आवश्यक है। इससे न केवल किसानों को आर्थिक राहत मिलेगी बल्कि क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।