Sun, 24 Aug 2025 10:09:21 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
हरितालिका तीज 2025: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर आने वाला हरितालिका तीज व्रत इस वर्ष मंगलवार, 26 अगस्त 2025 को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत की विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और पारिवारिक सुख-समृद्धि का पर्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। वहीं, अविवाहित कन्याएं भी योग्य वर की प्राप्ति की कामना से यह व्रत करती हैं।
पूजा का मुहूर्त और तिथि
पंचांगों के अनुसार इस वर्ष तृतीया तिथि का आरंभ 25 अगस्त 2025 को दोपहर 12:34 बजे होगा और इसका समापन 26 अगस्त 2025 को दोपहर 1:54 बजे के आसपास होगा। उदयातिथि के अनुसार व्रत और पूजन 26 अगस्त को ही किया जाएगा।
दिल्ली और उत्तर भारत के संदर्भ से प्रातःकालीन पूजा का श्रेष्ठ समय सुबह 5:56 से 8:31 बजे तक रहेगा। हालांकि, स्थानानुसार सूर्योदय में अंतर होता है, इसलिए स्थानीय पंचांग से मिलान करना उचित होगा। यदि प्रातःकाल में पूजा संभव न हो, तो प्रदोषकाल में भी पूजन किया जा सकता है।
हरितालिका तीज का महत्व
'हरितालिका'नाम के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी है। ‘हरित’ या 'हरत का अर्थ है-हर ले जाना, और 'आलिका' का अर्थ है सखी या सहेली। मान्यता है कि माता पार्वती की सखी ने उन्हें विवाह के लिए जबरन भगवान विष्णु को दिए जा रहे प्रस्ताव से बचाने के लिए वन में ले जाकर छिपा दिया था। वहीं, पार्वतीजी ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने का संकल्प लिया।
इस व्रत के माध्यम से स्त्रियां माता पार्वती की दृढ़ निष्ठा और दांपत्य सौभाग्य की भावना को स्मरण करती हैं। इसे सौभाग्य, समर्पण और पारिवारिक सुख का पर्व कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, हिमालयराज हिमवान की पुत्री पार्वती ने बचपन से ही भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। किंतु उनके परिवार ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने का निर्णय लिया। उसी समय पार्वतीजी की सखी उन्हें वन में ले गईं और वहीं उन्होंने कठोर उपवास रखकर शिव की तपस्या की। उनकी निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से यह व्रत स्त्रियों के लिए सर्वोच्च सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
पूजा-सामग्री
व्रत और पूजन में मुख्य रूप से शिव-पार्वती और गणेशजी की प्रतिमा या मिट्टी की मूर्ति, कलश, दीप, रोली, अक्षत, बेलपत्र, दूर्वा, नारियल, पान-सुपारी, सोलह श्रृंगार की सामग्री, चुनरी, फल-फूल, मिष्ठान और नैवेद्य का प्रयोग किया जाता है। परंपरानुसार सामग्री में क्षेत्रीय भिन्नताएं हो सकती हैं।
पूजन-विधि (संक्षेप में)
1. पूर्वसंध्या (25 अगस्त) को संध्या के बाद हल्का सात्त्विक आहार लेकर अगले दिन निर्जला या फलाहार व्रत का संकल्प करें।
2. व्रत-दिन (26 अगस्त) को प्रातः स्नान के बाद साफ और शुभ रंग के वस्त्र पहनें तथा सोलह श्रृंगार करें।
3. पूजा स्थल पर शिव-पार्वती-गणेश की स्थापना कर कलश व दीप प्रज्वलित करें। संकल्प लें और पूजन आरंभ करें।
4. सबसे पहले गणेश वंदना, फिर शिव-पार्वती का अभिषेक और अर्चन करें। बेलपत्र, फल-फूल, चुनरी, सिन्दूर अर्पित करें।
5. व्रत कथा का श्रवण और आरती करें। दिनभर सात्त्विकता, संयम और भक्ति का पालन करें।
6. कई क्षेत्रों में इस दिन रात्रि-जागरण का भी प्रचलन है।
अधिकतर परंपराओं में व्रत का पारण अगले दिन 27 अगस्त 2025 को प्रातः पूजा और दान के बाद किया जाता है। हालांकि कुछ स्थानों पर चंद्रदर्शन के बाद भी पारण करने की परंपरा है।
यह व्रत प्रायः निर्जला रखा जाता है, किंतु स्वास्थ्य कारणों या चिकित्सकीय सलाह पर फलाहार किया जा सकता है।सात्त्विकता, संयम, और सौभाग्य के प्रतीक, मेहंदी, चूड़ी, सिन्दूर का विशेष महत्व है।असत्य, कलह, निंदा, हिंसा और नशा से दूर रहना चाहिए।जरूरतमंदों को दान करना शुभ माना जाता है, विशेषकर सुहाग-सामग्री का दान।
उत्तर और मध्य भारत, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड में यह व्रत बड़े उत्साह से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे गौरी हब्बा के नाम से जाना जाता है और वहां माता गौरी की विशेष पूजा होती है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यह पर्व गणेश चतुर्थी के एक दिन पूर्व मनाया जाता है।
हरितालिका तीज सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि वैवाहिक जीवन में निष्ठा, समर्पण और सौहार्द का प्रतीक पर्व है। चाहे विवाहित महिलाएं हों या अविवाहित कन्याएं, सभी इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती से जीवन में सौभाग्य, दीर्घायु और पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।