वाराणसी: काशी तमिल संगमम के पांचवें समूह का विश्वनाथ धाम में भव्य स्वागत

काशी तमिल संगमम के पांचवें समूह का विश्वनाथ धाम में पारंपरिक स्वागत, अतिथियों ने मंदिर का भ्रमण किया।

Thu, 11 Dec 2025 12:32:16 - By : Palak Yadav

काशी तमिल संगमम के पांचवें समूह के वाराणसी आगमन पर काशी विश्वनाथ धाम में विशेष स्वागत समारोह आयोजित किया गया जिसमें मंदिर के शास्त्रियों ने पारंपरिक पुष्पवर्षा, डमरू और वेदध्वनि के साथ अतिथियों का अभिनंदन किया. संगमम में शामिल सभी सदस्यों ने हर हर महादेव और जय विश्वनाथ के उद्घोष के बीच बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए और श्री विश्वेश्वर के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित की. स्वागत के बाद मंदिर प्रशासन ने सभी आगंतुकों को काशी विश्वनाथ धाम के विस्तृत और भव्य कॉरिडोर का भ्रमण कराया. भ्रमण के दौरान अतिथियों को धाम के ऐतिहासिक स्वरूप, नवीनीकृत परिसर की संरचना, उत्तर दिशा में फैले विशाल परिदृश्य और बढ़ती श्रद्धालुओं की संख्या को ध्यान में रखकर विकसित की गई विभिन्न सुविधाओं के बारे में जानकारी दी गई. सदस्यों ने धाम के स्थापत्य और सौंदर्य से जुड़ी कई जानकारियों में रुचि दिखाई और इसे काशी के पुनरुत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास बताया. भ्रमण के बाद मंदिर प्रशासन ने सभी अतिथियों के लिए मंदिर के अन्नक्षेत्र में दोपहर का भोजन भी आयोजित किया.

इस वर्ष काशी तमिल संगमम की मुख्य थीम तमिल कराकलम रखी गई है जिसका अर्थ है आओ तमिल सीखें. इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए गुरुवार को श्री काशी विश्वनाथ धाम के शास्त्रियों के लिए तमिल भाषा का विशेष शिक्षण सत्र आयोजित किया गया. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के प्रोफेसर शिवा ने शास्त्रियों को तमिल भाषा का प्रारंभिक परिचय कराया. सत्र में तमिल में पशुओं के नाम, बच्चों की तरह क से ख जैसे मूल ध्वनि क्रम, तमिल स्वरों की संरचना और उच्चारण के अभ्यास पर विशेष ध्यान दिया गया. शास्त्रियों ने तमिल भाषा को समझने में गहरी रुचि दिखाई और इसे काशी तथा तमिल परंपरा के बीच सदियों से चले आ रहे सांस्कृतिक सेतु को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया.

इस शिक्षण सत्र का उद्देश्य दोनों परंपराओं के विद्वानों के बीच संवाद को सहज और स्वाभाविक बनाना है ताकि भारतीय संस्कृति के दो प्राचीन केंद्रों के बीच ज्ञान विनिमय और सांस्कृतिक आदान प्रदान नए स्तर पर स्थापित हो सके. काशी और तमिल संस्कृतियां लंबे समय से एक दूसरे से जुड़ी रही हैं और यह कार्यक्रम उस संबंध को पुनर्जीवित करने के साथ साथ नई पीढ़ी में आपसी सामंजस्य बढ़ाने का माध्यम भी बन रहा है. संगमम के सदस्य और स्थानीय शास्त्री दोनों ने इस पहल को भविष्य में और बड़े स्तर पर जारी रखने की आवश्यकता व्यक्त की.

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