मथुरा: श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर में आधी रात हुआ लीलाधर का प्राकट्य, उत्सव में डूबे श्रद्धालु

मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर में भादों मास की अष्टमी को आधी रात भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल हुए।

Sun, 17 Aug 2025 09:19:26 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

मथुरा: भादों मास की अष्टमी की अंधेरी रात जब घड़ी ने बारह बजाए, तो मानो पूरा ब्रज द्वापर युग में लौट गया। शनिवार मध्यरात्रि को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की प्रतीक्षा कर रहे लाखों श्रद्धालु उस क्षण के साक्षी बने, जब जन्मस्थान मंदिर में लीलाधर का प्राकट्य हुआ। आनंद और उल्लास से सराबोर भक्तों की आंखें घड़ी की सुइयों पर टिकी हुई थीं, और जैसे ही द्वादशी की बेला आई, चारों ओर बधाई गीत, शंखनाद और मृदंग की मंगल ध्वनियां गूंज उठीं।

श्रद्धा और भक्ति का ऐसा अद्भुत संगम शायद ही कहीं और देखने को मिले। मंदिर प्रांगण में भीड़ इस तरह उमड़ी थी मानो हर कोई उस पावन क्षण को अपने हृदय में संजो लेना चाहता हो। भावनाओं से भरे भक्तों की आंखों से आंसू झर रहे थे, तो कहीं उल्लास में झूमते हुए जनसमूह “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” के जयकारों से आसमान गुंजा रहे थे। ब्रज की गलियों, मंदिरों और घाटों पर हर जगह उत्सव का माहौल था।

जन्मस्थान मंदिर में रात्रि 11 बजे से ही विशेष पूजन की शुरुआत हो चुकी थी। श्रीगणेश और नवग्रह स्थापना के साथ वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच वातावरण शुद्ध और भक्तिमय बना। 11 बजकर 55 मिनट तक कमल पुष्प और तुलसीदल से सहस्त्रार्चन हुआ। इसके बाद श्रद्धालु उत्सुकता से उस क्षण की प्रतीक्षा में बैठ गए, जब उनके लल्ला का प्राकट्य होना था। घड़ी की सुई जब 11:59 पर आकर थम गई, तो मंदिर के पट बंद कर दिए गए। उस एक मिनट में श्रद्धालुओं को मानो समय थम गया हो।

मध्यरात्रि 12 बजते ही भागवत भवन में श्रीकृष्ण के चलित श्रीविग्रह का प्राकट्य हुआ। रजत कमल पुष्प पर विराजमान लल्ला का अभिषेक ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने पंचामृत और गंगाजल से किया। इस अवसर पर 100 किलोग्राम की सोने-चांदी से निर्मित कामधेनु गाय की प्रतिमा भी पूजन में शामिल रही। अभिषेक और आरती के साथ ही पूरा परिसर घंटों-घड़ियाल, ढोल-नगाड़ों और शंख की गूंज से भर उठा। भक्त झूमते और नाचते हुए प्रभु के जन्म का उत्सव मनाने लगे।

दर्शन का सिलसिला देर रात 1:30 बजे तक चलता रहा। इस दौरान लाखों श्रद्धालु बारी-बारी से प्रभु के दर्शन कर भावविभोर होते रहे। गोकुल, वृंदावन और पूरे ब्रजमंडल में भी मंदिरों की घंटियां गूंजती रहीं और हर ओर से बधाई गीत सुनाई देते रहे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ब्रज का कण-कण कान्हा के जन्म की पावन बेला पर नृत्य कर रहा हो।

इस भव्य उत्सव ने न केवल भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया, बल्कि ब्रज की संस्कृति, परंपरा और लोक आस्था की दिव्यता को भी एक बार फिर जीवंत कर दिया। श्रद्धालुओं का उल्लास इस बात का प्रमाण रहा कि श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि पूरे ब्रज और देशवासियों के लिए आस्था और आनंद का महापर्व है।

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