RSS शताब्दी समारोह में PM मोदी का संबोधन, 100 रुपये का स्मारक सिक्का और विशेष डाक टिकट जारी

प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह में 100 रुपये का सिक्का और विशेष डाक टिकट जारी किया, राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका बताई।

Wed, 01 Oct 2025 23:00:20 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बुधवार को राजधानी दिल्ली में ऐतिहासिक समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे और उन्होंने संघ की गौरवशाली यात्रा को चिह्नित करने के लिए ₹100 मूल्य का स्मारक सिक्का तथा विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया। यह समारोह डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में आयोजित हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री ने संघ की राष्ट्र निर्माण में निभाई भूमिका को विस्तार से रेखांकित किया।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि यह हम सबका सौभाग्य है कि संघ का शताब्दी वर्ष हमारे जीवनकाल में आया है। उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि दी और सभी स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं दीं। पीएम मोदी ने बताया कि विजयादशमी से लेकर अगले वर्ष विजयादशमी तक पूरे वर्षभर संघ शताब्दी वर्ष का उत्सव मनाया जाएगा।

अपने भाषण की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने नवरात्रि की शुभकामनाएं दीं और विजयादशमी के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि असत्य पर सत्य, अन्याय पर न्याय और अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक यह पर्व, संघ की स्थापना से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। मोदी ने कहा, "यह कोई संयोग नहीं था कि 100 साल पहले विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना हुई। यह उस प्राचीन राष्ट्र चेतना का पुनरुत्थान था, जो समय-समय पर चुनौतियों का सामना करने के लिए नए स्वरूप में प्रकट होती रही है।"

प्रधानमंत्री ने संघ की सौ वर्षों की यात्रा को याद करते हुए कहा कि यह केवल एक संगठन की कहानी नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण की सतत प्रक्रिया का प्रतीक है। उन्होंने स्मारक सिक्के की विशेषताओं पर भी विस्तार से चर्चा की। सिक्के के एक ओर राष्ट्रीय चिन्ह और दूसरी ओर सिंह के साथ वरद मुद्रा में भारत माता की छवि अंकित है। इसके ऊपर संघ का बोधवाक्य भी लिखा है, "राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम।" प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार भारत माता की तस्वीर भारतीय मुद्रा पर अंकित की गई है।

अपने संबोधन में पीएम मोदी ने संघ के ऐतिहासिक योगदानों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि 1963 में आरएसएस स्वयंसेवक गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हुए थे और उस समय राष्ट्रभक्ति की धुन पर उनकी अनुशासित कदमताल ने सबका मन मोह लिया था। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार नदियों के किनारे सभ्यताएं फली-फूलीं, उसी तरह संघ की धारा ने भी असंख्य जीवनों को पुष्पित और पल्लवित किया।

मोदी ने संघ की कार्यपद्धति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शाखा एक ऐसी प्रेरणा भूमि है, जहां स्वयंसेवक की यात्रा 'अहं' से 'वयं' की ओर होती है। उन्होंने कहा, "संघ में सामान्य लोग मिलकर असामान्य और अद्भुत कार्य करते हैं। व्यक्ति निर्माण की यह प्रक्रिया राष्ट्र निर्माण का आधार बनी है। संघ का भाव हमेशा एक ही रहा है, राष्ट्र प्रथम, लक्ष्य एक ही रहा है, एक भारत, श्रेष्ठ भारत।"

प्रधानमंत्री ने इस दौरान संघ के खिलाफ हुए साजिशों और चुनौतियों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद संघ को कई बार कुचलने की कोशिश हुई। यहां तक कि परमपूज्य गुरुजी गोलवलकर को झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेजा गया। लेकिन उनकी सहजता और राष्ट्रनिष्ठा ने संघ को और मजबूत किया। मोदी ने गुरुजी के उस कथन का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि "कभी-कभी जीभ दांतों के नीचे दबकर कुचल जाती है, लेकिन हम दांत तोड़ते नहीं, क्योंकि जीभ भी हमारी है और दांत भी हमारे हैं।"

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि विभाजन की त्रासदी के दौरान शरणार्थियों की सेवा से लेकर आदिवासी समाज के कल्याण तक, संघ ने हमेशा सेवा और राष्ट्रभक्ति को अपना मार्गदर्शक बनाया। उन्होंने बताया कि देश के लगभग 10 करोड़ आदिवासी भाइयों-बहनों के जीवन को सशक्त बनाने के लिए संघ लगातार कार्यरत है। सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्यालय और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों ने आदिवासी समाज को शिक्षा, संस्कृति और परंपराओं से जोड़कर राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का कार्य किया है।

समारोह के अंत में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि आरएसएस ने सदैव "खुद कष्ट सहकर दूसरों के दुख दूर करने" का भाव अपनाया है। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले और बाद में संघ की यात्रा हमेशा राष्ट्रहित में रही है। उन्होंने इस अवसर को भारत के इतिहास का महत्वपूर्ण क्षण बताया और कहा कि आरएसएस की सौ वर्षों की यात्रा आने वाले भारत के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।

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