Fri, 31 Oct 2025 11:04:52 - By : Palak Yadav
वाराणसी: भारत के पहले गृह मंत्री और लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की 150वीं जयंती की पूर्व संध्या पर काशी में कठपुतली नाटक “हिन्द के सरदार” का प्रथम प्रदर्शन हुआ। यह प्रस्तुति न केवल कलात्मक दृष्टि से अनूठी रही बल्कि देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत भी थी। काशी के भंदहा कला, कैथी स्थित आशा लाइब्रेरी में सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट के तत्वावधान में क्रिएटिव पपेट आर्ट्स ग्रुप द्वारा आयोजित इस नाटक में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ी।
नाटक का विषय सरदार पटेल के जीवन और योगदान पर केंद्रित था, जिसमें उनकी संघर्षमय यात्रा, स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका और भारत के एकीकरण में उनके अभूतपूर्व योगदान को कठपुतलियों के माध्यम से जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया। 54 मिनट की इस प्रस्तुति में कुल 78 कठपुतलियों का प्रयोग किया गया, जिन्हें बारीकी से तैयार किया गया था। इस नाट्य प्रस्तुति में छह कुशल कठपुतली कलाकारों ने भाग लिया, जिन्होंने अपनी निपुणता और समर्पण से पूरे दर्शक वर्ग को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम के संयोजक और प्रसिद्ध कठपुतली कलाकार मिथिलेश दुबे ने बताया कि यह नाटक पटेल जी के जीवन पर आधारित देश का पहला कठपुतली नाटक है। उन्होंने कहा कि इस नाटक के निर्माण में एक वर्ष का समय लगा और प्रत्येक कठपुतली को विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए तैयार किया गया। इस नाटक का कथानक राजस्थान के राजसमंद जिले के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ नरेंद्र निर्मल ने लिखा है, जिन्होंने सरदार पटेल के जीवन को कलात्मकता और ऐतिहासिक सटीकता के साथ प्रस्तुत किया। दुबे ने बताया कि पटेल जी की 150वीं जयंती के अवसर पर देशभर में इस नाटक की 150 प्रस्तुतियों का लक्ष्य रखा गया है ताकि उनके विचारों और आदर्शों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके।
कार्यक्रम में आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी थे बल्कि वे एक सच्चे राष्ट्रनिर्माता थे जिन्होंने अखंड भारत का सपना साकार किया। उन्होंने बताया कि पटेल जी ने 562 रियासतों को एकजुट कर भारतीय गणराज्य की नींव रखी और अपने कठोर परिश्रम से भारत को एक सशक्त और एकीकृत राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
नाटक की प्रस्तुति में सरदार पटेल के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को दिखाया गया, जैसे उनके किसान आंदोलन में योगदान, बारडोली सत्याग्रह, गांधीजी के प्रति उनकी निष्ठा, और स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनकी निर्णायक भूमिका। कठपुतलियों की जीवंत अदायगी, संवादों की गूंज और देशभक्ति से भरे संगीत ने दर्शकों को भावनात्मक कर दिया। दर्शकों ने प्रस्तुति के अंत में तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।
मिथिलेश दुबे के निर्देशन में प्रस्तुति देने वाले कलाकारों में अनिल कुमार, विशाल सिंह, सुजीत कुमार, पंकज कुमार और विशाल कुमार शामिल थे। इन सभी ने अपनी कला से न केवल सरदार पटेल के जीवन को सजीव किया बल्कि कठपुतली कला की गहराई और सुंदरता को भी प्रदर्शित किया। आयोजन के सफल संचालन में प्रदीप कुमार सिंह, राजकुमार पटेल, सौरभ चंद्र, दीनदयाल सिंह, ज्योति सिंह, साधना, सरोज और श्वेता की विशेष भूमिका रही।
कार्यक्रम में कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे जिनमें डॉ विद्या सागर पाण्डेय, डॉ शशि भूषण सिंह, गोविन्द चौबे, नीरज चौबे, श्यामाचरण पाण्डेय, सौरभ सिंह, अरुण पाण्डेय, शिवेंद्र सिंह, राम जनम, रणवीर पाण्डेय, शशि प्रकाश, मनोज यादव, रमेश प्रसाद और गोरख शामिल थे। सभी अतिथियों ने नाटक की सराहना करते हुए कहा कि यह पहल न केवल सरदार पटेल की स्मृति को सम्मानित करती है बल्कि देश की लोककला और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखती है।
कार्यक्रम के अंत में दर्शकों ने सरदार पटेल अमर रहें के नारों से वातावरण को गुंजायमान कर दिया। यह प्रस्तुति इस बात का प्रतीक थी कि आज भी देश सरदार पटेल के योगदान को आदरपूर्वक स्मरण करता है और उनके बताए मार्ग पर आगे बढ़ने का संकल्प दोहराता है।