Wed, 15 Oct 2025 20:07:27 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी/रामनगर: काशी की पावन धरती पर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी खिड़कियां घाट पर आयोजित होने वाले गोवर्धन पूजनोत्सव की तैयारियां पूरे उत्साह और आस्था के साथ जोरों पर हैं। इसी को लेकर आज दिनांक 15 अक्टूबर को सायं 3 बजे पुराना रामनगर स्थित श्री साईं वाटिका में गोवर्धन पूजा समिति की आवश्यक बैठक संपन्न हुई। बैठक में आगामी 22 अक्टूबर को होने वाले वार्षिक पूजनोत्सव की रूपरेखा, व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक आयोजनों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई।
बैठक की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी एडवोकेट श्री मुरारी लाल यादव ने की, जबकि संचालन समिति के महामंत्री जयप्रकाश यादव और पार्षद रामकुमार यादव ने संयुक्त रूप से किया। बैठक में समिति के अध्यक्ष विनोद यादव गप्पू ने जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष का गोवर्धन पूजनोत्सव विशेष रूप से आकर्षक और ऐतिहासिक स्वरूप में आयोजित किया जाएगा। इस बार उत्सव का प्रमुख आकर्षण "रेजांगला युद्ध" से प्रेरित झांकियां होंगी, जो भारतीय वीरता और बलिदान की भावना को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करेंगी।
हमारे संवाददाता से बात करते हुए मुरारी लाल यादव ने कहा कि गोवर्धन पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि गाय, गोपाल और गोवर्धन पर्वत के प्रति श्रद्धा और प्रकृति संरक्षण का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि मनुष्य का कर्तव्य केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि अपनी धरती, जल, वनस्पति और पशुधन की रक्षा में भी निहित है।
बैठक में बड़ी संख्या में स्थानीय समाजसेवी, कार्यकर्ता और श्रद्धालु उपस्थित रहे। इनमें प्रमुख रूप से कैलाश यादव, ज्ञानू यादव, अजय यादव, जितेन्द्र यादव, राजेश अहीर, उमाकांत यादव, सर्वजीत यादव, लक्ष्मी पहलवान, नरेश पहलवान, दयाराम यादव, मन्नू यादव, बलराम यादव, जवाहर यादव, संजय यादव, राजेन्द्र यादव और अशोक यादव सहित अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि इस बार गोवर्धन पूजनोत्सव को भव्य, सांस्कृतिक और अनुकरणीय स्वरूप दिया जाएगा।
गोवर्धन पूजा की शुरुआत द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा की गई मानी जाती है। कथा के अनुसार, जब ब्रजवासियों ने इंद्र देव के कोप से बचने के लिए श्रीकृष्ण के कहने पर इंद्र की पूजा बंद कर दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ की, तब क्रोधित होकर इंद्र ने भयंकर वर्षा की। उस समय बाल गोपाल श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रज को सुरक्षा प्रदान की। यह घटना प्रकृति और मानव के बीच संतुलन की सीख देती है। इसी दिवस को ‘गोवर्धन पूजा’ या ‘अन्नकूट उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है।
वाराणसी में यह परंपरा सदियों पुरानी है। खिड़कियां घाट का यह पूजनोत्सव गंगा तट पर आस्था, संस्कृति और लोक जीवन का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु गायों की पूजा, गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति की परिक्रमा और अन्नकूट भंडारा में भाग लेते हैं। पूरे घाट क्षेत्र को फूलों, दीपों और रंगोली से सजाया जाता है।
गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गोधन, पर्यावरण संरक्षण और सामूहिक सद्भाव का उत्सव है। यह पर्व किसान, पशुपालक और आम जनमानस के जीवन में एकता, कृतज्ञता और प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना को पुनर्जीवित करता है।
काशी का खिड़कियां घाट इस आयोजन का मुख्य केंद्र होता है, जहाँ श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं। शाम होते ही घाट दीपमालाओं से जगमगा उठता है और भजन-कीर्तन की धुनों से वातावरण गूंज उठता है। स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुति, गोपाल लीला की झांकियां और अन्नकूट महाप्रसाद का आयोजन भक्तों को भक्ति रस में सराबोर कर देता है।
समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि इस वर्ष सुरक्षा, यातायात और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की जाएगी। महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विशेष बैठने की व्यवस्था, चिकित्सीय सुविधा और स्वयंसेवकों की टीम हर समय सक्रिय रहेगी।
काशी की पावन मिट्टी में बसने वाली यह परंपरा केवल उत्सव नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही संस्कृति, श्रद्धा और सामाजिक एकता की मिसाल है। 22 अक्टूबर को खिड़कियां घाट पर होने वाला यह गोवर्धन पूजनोत्सव निश्चय ही एक अविस्मरणीय, आलौकिक और अद्भुत अनुभव बनकर उभरेगा।