देशभर में विद्यार्थियों ने धूमधाम से मनाया शिक्षक दिवस, याद किए गए डॉ. राधाकृष्णन

भारत में शिक्षक दिवस आज उत्साह से मनाया गया, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में यह दिवस समर्पित है।

Fri, 05 Sep 2025 09:26:28 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

वाराणसी: देशभर में आज शिक्षक दिवस उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक आयोजित कार्यक्रमों में विद्यार्थियों ने अपने शिक्षकों को सम्मानित किया और गुरुजनों के योगदान को नमन किया। यह अवसर केवल एक दिवस का आयोजन नहीं, बल्कि उन सभी शिक्षकों और गुरुओं के प्रति आभार का प्रतीक है जिन्होंने समाज और राष्ट्र की नींव को मजबूत बनाने का कार्य किया है।

भारत में शिक्षक दिवस की परंपरा वर्ष 1962 से शुरू हुई। इसी वर्ष डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने। जब उनके शिष्यों और मित्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की बात कही, तो उन्होंने कहा, कि यदि मनाना ही है तो इसे मेरे लिए नहीं, बल्कि सभी शिक्षकों को समर्पित दिवस के रूप में मनाया जाए। तभी से 5 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोच्च रहा है। वेद और उपनिषदों में गुरु को ईश्वर से भी महान बताया गया है। गुरुकुल परंपरा में शिक्षा केवल ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि अनुशासन, संस्कार, समाज सेवा और जीवन जीने की कला भी उसमें शामिल थी। महर्षि वेदव्यास, आचार्य चाणक्य और गुरु सांदीपनि जैसे आचार्यों ने अपने शिष्यों को न केवल विद्वान बनाया बल्कि राष्ट्र और समाज के प्रति उत्तरदायी भी।

हिंदू परंपरा में गुरु को त्रिदेव के समान माना गया है। इसका सुंदर उदाहरण इस श्लोक में मिलता है-
"गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥"

जिसका मतलब यह हुआ, कि गुरु ही सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा हैं, गुरु ही पालनकर्ता विष्णु हैं और गुरु ही संहारकर्ता महेश (शिव) हैं। गुरु को ही साक्षात परमब्रह्म का रूप माना गया है, इसलिए उन्हें बार-बार नमन करना चाहिए।
यह श्लोक इस बात को स्पष्ट करता है कि गुरु केवल शिक्षा देने वाले नहीं, बल्कि जीवन और ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों को समझाने वाले भी हैं।

भक्ति कालीन संत कबीरदास जी का यह प्रसिद्ध दोहा आज भी शिक्षक दिवस पर विशेष रूप से याद किया जाता है-
"गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूँ पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविंद दियो बताय॥"

यहां कबीरदास जी ने गुरु को ईश्वर से भी बड़ा बताया है, क्योंकि गुरु ही वह हैं जो हमें ईश्वर, सत्य और ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं। यदि गुरु न हों तो मनुष्य अज्ञान के अंधकार से कभी बाहर नहीं आ सकता।


प्राचीन काल का गुरु केवल शिष्य का व्यक्तिगत मार्गदर्शक और जीवन-निर्माता होता था, जबकि आधुनिक शिक्षक पूरे समाज को ज्ञान देने की जिम्मेदारी निभाता है। गुरु आत्मा का शिल्पकार होता है और शिक्षक समाज की सामूहिक चेतना का निर्माता। फर्क अलग-अलग है, लेकिन दोनों की भूमिका अमूल्य और अनिवार्य है।

आज जब तकनीक ने शिक्षा को नया स्वरूप दिया है, तब भी शिक्षक का महत्व कम नहीं हुआ। ऑनलाइन कक्षाएँ, स्मार्ट बोर्ड और डिजिटल शिक्षा ने भले ही पढ़ाई का तरीका बदला है, लेकिन नैतिक मूल्य, संस्कार और अनुशासन आज भी शिक्षक ही सिखाते हैं। वे न केवल ज्ञान देते हैं बल्कि विद्यार्थियों को जिम्मेदार नागरिक बनाने का काम भी करते हैं।

शिक्षक दिवस पर वाराणसी सहित पूरे देश में सम्मान समारोह आयोजित हुए। विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए और अपने शिक्षकों को उपहार, पुष्प और अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया। कई शिक्षकों को उनके आजीवन योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया।

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