Sat, 06 Dec 2025 15:50:41 - By : Palak Yadav
काशी तमिल संगमम 4.0 में दक्षिण भारत से आने वाले आगंतुकों का सिलसिला लगातार जारी है। रविवार सुबह तमिलनाडु से तीसरा दल विशेष ट्रेन से बनारस रेलवे स्टेशन पहुंचा। इस दल में कई प्रमुख लेखक और साहित्य से जुड़े लोग शामिल थे। स्टेशन पर उनके पहुंचते ही पूरे परिसर में स्वागत की तैयारियां एक अलग ही रंग में दिखाई दीं। पारंपरिक डमरू वादन, पुष्पवर्षा और हर हर महादेव तथा वणक्कम काशी के स्वरों ने माहौल को आध्यात्मिक बना दिया। आगंतुकों ने कहा कि काशी में उन्हें जिस तरह का सम्मान मिला है वह उनके जीवन की सदियों तक याद रहने वाली अनुभूति होगी। स्वागत का यह दृश्य उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक निकटता को और अधिक स्पष्ट रूप से सामने लाता है।
स्टेशन पर पहुंचे तमिल अतिथियों में उत्साह साफ दिखाई दिया। कई आगंतुकों ने कहा कि काशी की पवित्रता और यहां की सांस्कृतिक गर्मजोशी उन्हें भावविह्वल कर देती है। डमरू वादन की गूंज से पूरा परिसर शिव भक्ति की धारा में डूब गया था। लोग लगातार फोटो और वीडियो बनाते नजर आए, जबकि स्वयंसेवक पुष्पवर्षा के माध्यम से अतिथियों को घर जैसा स्वागत देने में व्यस्त थे। काशी और तमिलनाडु के बीच सदियों से चली आ रही आध्यात्मिक कड़ी इस कार्यक्रम के माध्यम से और मजबूत हो रही है।
चेन्नई से आए शिक्षक केएल विकास ने काशी आगमन को अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में से एक बताया। उन्होंने यहां पहुंचकर एक विशेष संकल्प भी लिया है। वह काशी के गंगाजल से उत्तर और दक्षिण भारत के प्रख्यात शिव मंदिरों की एक चित्र श्रृंखला तैयार करेंगे। इसकी शुरुआत वह तेनकाशी के विश्वनाथ मंदिर के चित्र से करेंगे। केएल विकास ने बताया कि काशी आने का सपना वह बचपन से देखते रहे हैं। शिक्षण क्षेत्र में आने के बाद भी कई बार अवसर के करीब आने के बावजूद वह काशी नहीं पहुंच सके। इस वर्ष फरवरी में हुए काशी तमिल संगमम के तीसरे संस्करण में भी उनका चयन हो गया था लेकिन अस्वस्थता के कारण यात्रा संभव नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास था कि यह अवसर फिर मिलेगा और अब वह पूरी श्रद्धा के साथ इस संगम का हिस्सा बने हैं।
केएल विकास के इस संकल्प ने तमिलनाडु से आए अन्य आगंतुकों को भी प्रेरित किया है। उन्होंने कहा कि काशी का आध्यात्मिक वातावरण और यहां की सांस्कृतिक सम्पन्नता हर आगंतुक को गहराई से प्रभावित करती है। काशी तमिल संगमम 4.0 एक बार फिर उत्तर और दक्षिण की साझा विरासत का ऐसा सेतु बन गया है जो दोनों प्रदेशों के लोगों को एक दूसरे की परंपराओं और संस्कृति के और करीब लाता है।