यूपी: पुलिस रिकॉर्ड में अब जाति का उल्लेख नहीं, पिता संग मां का नाम भी होगा दर्ज

उत्तर प्रदेश सरकार ने जातीय भेदभाव रोकने के लिए पुलिस रिकॉर्ड में आरोपी की जाति का उल्लेख बंद किया, अब मां का नाम भी दर्ज होगा।

Mon, 22 Sep 2025 21:40:18 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

लखनऊ: जातीय भेदभाव को रोकने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। अब से पुलिस रिकॉर्ड, नोटिस बोर्ड और गिरफ्तारी मेमो में आरोपी की जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। साथ ही आरोपी के पिता के नाम के साथ अब माता का नाम भी दर्ज किया जाएगा। यह निर्देश रविवार को कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने जारी किए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि समाज में जातीय विभाजन बढ़ाने वाली किसी भी प्रवृत्ति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सरकार का यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद लिया गया है। कोर्ट ने पुलिस और प्रशासन को जातिगत पहचान को सार्वजनिक रूप से दर्ज करने की प्रथा पर कड़ी आपत्ति जताई थी। इसके बाद सरकार ने आदेश दिया कि वाहनों पर जाति लिखकर घूमने वालों पर चालान होगा, जातीय स्टिकर और नारे हटाए जाएंगे तथा जाति आधारित रैलियों और बोर्ड लगाने पर भी प्रतिबंध रहेगा।

नए आदेश में साफ किया गया है कि सोशल मीडिया पर किसी जाति को बढ़ावा देने या किसी जाति के खिलाफ नफरत फैलाने वाले पोस्ट करने पर कड़ी कार्रवाई होगी। ऐसे मामलों में संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस FIR दर्ज करेगी। केवल उन्हीं मामलों में जाति दर्ज करने की अनुमति होगी, जहां कानूनन यह अनिवार्य है, जैसे कि एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज केस।

कस्बों और शहरों में लगे ऐसे बोर्ड, जिनमें किसी जाति का महिमामंडन किया गया है, तुरंत हटाने का निर्देश दिया गया है। आगे से यदि कोई ऐसे बोर्ड या बैनर लगाएगा, तो प्रशासन सख्ती से कार्रवाई करेगा। वहीं, सड़क पर चलने वाले वाहनों पर 'जाट हूं', 'ठाकुर साहब', 'पंडित जी' जैसे स्लोगन लिखे होने पर अब मोटर व्हीकल एक्ट के तहत चालान होगा।

सरकार के इस कदम पर सियासी प्रतिक्रिया भी सामने आई है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर तंज कसते हुए लिखा कि, 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिह्नों के जरिए जाति-प्रदर्शन से उपजे भेदभाव को मिटाने के लिए क्या उपाय होंगे। नाम से पहले जाति पूछने और सामाजिक अपमान की मानसिकता खत्म करने के लिए कौन कदम उठाए जाएंगे।

दरअसल, यह मामला इटावा के जसवंत नगर थाने से जुड़ा है। 29 अप्रैल 2023 को पुलिस ने एक स्कॉर्पियो गाड़ी रोकी थी, जिसमें प्रवीण छेत्री समेत तीन लोग पकड़े गए। गाड़ी से 106 बोतल अवैध व्हिस्की और फर्जी नंबर प्लेट बरामद हुए। बरामदगी मेमो में आरोपियों की जाति 'माली', 'पहाड़ी राजपूत' और 'ठाकुर' लिखी गई थी। बाद में दूसरी गाड़ी से 254 और बोतल शराब बरामद हुई, जिसमें मालिक की जाति 'पंजाबी पाराशर' और 'ब्राह्मण' के रूप में दर्ज की गई।

आरोपियों ने कबूल किया कि वे हरियाणा से बिहार शराब तस्करी कर रहे थे और प्रवीण छेत्री उनका गैंग लीडर है। इसके बाद छेत्री ने हाईकोर्ट में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने FIR और जब्ती मेमो में जाति दर्ज करने की कड़ी आलोचना की और इसे असंवैधानिक ठहराया। कोर्ट ने कहा कि यह परंपरा संवैधानिक नैतिकता को कमजोर करती है और लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती है।

हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि पुलिस रिकॉर्ड, गिरफ्तारी मेमो, बरामदगी रिपोर्ट और फाइनल रिपोर्ट से जाति का कॉलम हटाया जाए। इसके साथ ही, युवाओं में जातिवाद विरोधी जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया। नागरिक शिकायतों के लिए पोर्टल और मोबाइल ऐप बनाने पर भी जोर दिया गया।

सरकार का यह कदम केवल प्रशासनिक सुधार ही नहीं, बल्कि एक बड़ा सामाजिक संदेश भी है। जातिगत भेदभाव को लेकर लगातार बढ़ती बहस के बीच यह आदेश आने से उम्मीद की जा रही है कि समाज में बराबरी और सम्मान की भावना को मजबूती मिलेगी। अब देखने वाली बात यह होगी कि इसे जमीन पर लागू करने में पुलिस और प्रशासन कितनी गंभीरता दिखाता है।

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