Wed, 20 Aug 2025 22:05:51 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
लखनऊ: प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग के बाद अब माध्यमिक शिक्षा विभाग में भी फर्जी अंकपत्र और प्रमाणपत्र पर नौकरी पाने वाले शिक्षकों का बड़ा भंडाफोड़ हुआ है। आज़मगढ़ मंडल में नियुक्त 22 शिक्षकों को जांच में फर्जी दस्तावेज़ों का दोषी पाया गया, जिसके बाद विभाग ने उनकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दीं। साथ ही, इनसे अब तक प्राप्त वेतन की वसूली करने और संबंधित थानों में एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश भी जारी किए गए हैं।
माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से वर्ष 2014 में एलटी ग्रेड (सहायक अध्यापक) पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। निर्धारित औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 2016 में चयनित उम्मीदवारों की तैनाती की गई। यह भर्ती मेरिट सूची पर आधारित थी, ऐसे में कई अभ्यर्थियों ने अपने अंक बढ़ाने के लिए फर्जी अंकपत्र और प्रमाणपत्र लगाए और नौकरी हासिल कर ली। शुरुआती दौर में कुछ अभिलेखों पर संदेह हुआ, जिसके बाद विभाग ने इनकी बार-बार जांच कराई।
माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव ने जानकारी दी कि अंतिम जांच रिपोर्ट संयुक्त निदेशक (माध्यमिक शिक्षा), आज़मगढ़ मंडल की अध्यक्षता वाली समिति ने प्रस्तुत की। इसमें साफ तौर पर पाया गया कि 22 शिक्षकों के अंकपत्र व प्रमाणपत्र फर्जी और कूटरचित थे। इसी आधार पर इन्हें बर्खास्त कर दिया गया। जिला विद्यालय निरीक्षक को निर्देश दिए गए हैं कि इनकी सेवा समाप्त करते हुए वेतन की रिकवरी की कार्रवाई की जाए और प्राथमिकी दर्ज कराई जाए।
हालांकि, यह तथ्य भी चौंकाने वाला है कि दस्तावेज़ों की अंतिम पुष्टि में विभाग को लगभग दस वर्ष का लंबा समय लग गया। इस देरी ने न केवल चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्न खड़े किए हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि फर्जीवाड़े पर शुरुआती स्तर पर सख्ती क्यों नहीं बरती गई।
विभागीय अधिकारियों ने बताया कि इन शिक्षकों ने मोनार्ड यूनिवर्सिटी हापुड़ और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से जारी फर्जी अंकपत्र प्रस्तुत किए थे। जांच और सत्यापन के दौरान गड़बड़ी सामने आने के बाद कार्यवाही को अंतिम रूप दिया गया। गौरतलब है कि मोनार्ड यूनिवर्सिटी का नाम पहले भी फर्जी डिग्री और मार्क्सशीट बनाने के मामलों में सामने आ चुका है।
बर्खास्त किए गए शिक्षकों में विनय कुमार यादव, पवन कुमार, अतुल प्रकाश वर्मा, अंकित वर्मा, लक्ष्मी देवी, विवेक सिंह, राज रजत वर्मा, रोहिणी शर्मा, अमित गिरी, रुचि सिंघल, प्रियंका, नूतन सिंह, दीपा सिंह, अनीता रानी, प्रीति सिंह, नंदिनी, आनंद सोनी, गीता, सलोनी अरोरा, किरन मौर्या, रुमन विश्वकर्मा और सरिता मौर्य के नाम शामिल हैं।
इस पूरे प्रकरण ने प्रदेश में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता और शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सत्यापन की प्रक्रिया समयबद्ध और कठोर होती, तो हजारों छात्रों का भविष्य उन शिक्षकों के हाथों में न जाता जिन्होंने फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे नौकरी पाई थी।