Sun, 28 Dec 2025 21:30:52 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के करोड़ों बिजली उपभोक्ताओं के लिए नया साल एक सुखद खबर लेकर आ रहा है। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने ईंधन अधिभार शुल्क (Fuel Surcharge) को लेकर जो नया आदेश जारी किया है, वह आम जनता की जेब को काफी सुकून देने वाला है। आदेश के मुताबिक, अक्टूबर महीने के ईंधन अधिभार का समायोजन अब जनवरी 2026 के बिजली बिलों में किया जाएगा। इसका सीधा मतलब यह है कि प्रदेश के सभी श्रेणियों के विद्युत उपभोक्ताओं को उनके कुल बिल में 2.33 प्रतिशत की 'रिबेट' (छूट) मिलेगी। आसान शब्दों में कहें तो जनवरी महीने में बिजली की दरें पिछले महीनों के मुकाबले सस्ती रहेंगी। पावर कॉरपोरेशन के इस फैसले से पूरे प्रदेश के उपभोक्ताओं को करीब 141 करोड़ रुपये का सीधा आर्थिक लाभ मिलने का अनुमान है। यह राहत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी पिछले महीने ही (दिसंबर में) उपभोक्ताओं को ईंधन अधिभार के नाम पर अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ा था, जब सितंबर माह के समायोजन के चलते 5.56 प्रतिशत की दर से वसूली की गई थी और जनता की जेब से करीब 264 करोड़ रुपये ज्यादा निकले थे।
बिजली दरों में इस उतार-चढ़ाव के बीच उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने एक बड़ा मुद्दा उठाते हुए पावर कॉरपोरेशन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष और राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने इस 2.33 प्रतिशत की छूट का स्वागत तो किया, लेकिन साथ ही एक गंभीर दावा भी पेश किया। वर्मा ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर पहले से ही करीब 33,122 करोड़ रुपये का 'सरप्लस' (अतिरिक्त पैसा) जमा है। इतना ही नहीं, चालू वित्तीय वर्ष के अंत तक इसमें लगभग 18,592 करोड़ रुपये और जुड़ने की प्रबल संभावना है। यानी कुल मिलाकर देखें तो उपभोक्ताओं का कंपनियों पर 51 हजार करोड़ रुपये से अधिक का बकाया निकलता है। वर्मा ने मांग की है कि जब तक यह भारी-भरकम सरप्लस राशि समायोजित नहीं हो जाती, तब तक ईंधन अधिभार के नाम पर जनता से किसी भी प्रकार की वसूली बंद होनी चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि अब जब प्रदेश में 'ट्रांसमिशन डिमांड बेस्ड टैरिफ' लागू हो चुका है और नई दरें प्रभावी हैं, तो आने वाले महीनों में बिजली और सस्ती होनी चाहिए, न कि सरचार्ज के नाम पर खेल चलता रहे।
एक तरफ जहां उपभोक्ताओं को राहत मिल रही है, वहीं दूसरी तरफ बिजली विभाग के भीतर असंतोष की आग भड़क रही है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने प्रबंधन की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। समिति ने सीधे मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की अपील की है ताकि विभाग में चल रही बड़े पैमाने पर छंटनी और 'रिस्ट्रक्चरिंग' (पुनर्गठन) की प्रक्रिया पर रोक लगाई जा सके। कर्मचारी नेताओं का आरोप है कि रिस्ट्रक्चरिंग की आड़ में हजारों नियमित पदों को खत्म करने की साजिश रची जा रही है, जिसका सीधा असर प्रदेश की बिजली व्यवस्था पर पड़ेगा। उनका कहना है कि अगर अनुभवी संविदा कर्मियों और नियमित कर्मचारियों को हटाया गया, तो पूरी व्यवस्था पटरी से उतर सकती है, जिससे अंततः जनता को ही अंधेरे में रहना पड़ेगा।
संघर्ष समिति ने इस पूरी कवायद को निजीकरण की ओर बढ़ा एक कदम बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रबंधन का असली मकसद राज्य के कई प्रमुख शहरों की बिजली व्यवस्था को 'फ्रेंचाइजी' मॉडल पर निजी हाथों में सौंपना है। इसके लिए आगरा का उदाहरण दिया गया, जहां फ्रेंचाइजी का प्रयोग पूरी तरह विफल साबित हुआ था। समिति के केंद्रीय पदाधिकारियों ने दुख जताते हुए कहा कि बेहद कम वेतन पाने वाले हजारों संविदा कर्मियों को पिछले साल मई से बिना किसी ठोस कारण के नौकरी से निकाला जा रहा है। यह सब तब हो रहा है जब मई 2017 में पावर कॉरपोरेशन ने खुद एक मानक तय किया था, जिसके तहत शहरी उपकेंद्रों पर 36 और ग्रामीण उपकेंद्रों पर 20 कर्मचारियों का होना अनिवार्य है। लेकिन अब नए टेंडर प्रक्रियाओं में इन मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और 27% से लेकर 45% तक कर्मचारियों की कटौती की जा रही है।
कर्मचारी नेताओं ने चेतावनी दी है कि लखनऊ, मेरठ, अलीगढ़, बरेली और नोएडा जैसे बड़े शहरों में 'वर्टिकल रिस्ट्रक्चरिंग' के नाम पर मची अफरातफरी अब बर्दाश्त से बाहर है। हजारों नियमित पद समाप्त किए जा रहे हैं, जिससे इन शहरों की बिजली आपूर्ति व्यवस्था चरमरा रही है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में निजीकरण की सुगबुगाहट और कर्मचारियों के उत्पीड़न के खिलाफ अब बिजली कर्मी चुप नहीं बैठेंगे। संयुक्त संघर्ष समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि वे व्यापक जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं और जल्द ही एक बड़ा और उग्र आंदोलन शुरू किया जाएगा, जिसकी पूरी जिम्मेदारी प्रबंधन की होगी।