लखनऊ: सपा से निष्कासित तीन विधायक विधानसभा में हुए असंबद्ध घोषित

उत्तर प्रदेश विधानसभा में समाजवादी पार्टी से निष्कासित तीन विधायकों को औपचारिक रूप से असंबद्ध सदस्य घोषित किया गया, राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद हुई कार्रवाई।

Thu, 10 Jul 2025 15:43:09 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है, जहां समाजवादी पार्टी से निष्कासित किए गए तीन विधायकों को अब उत्तर प्रदेश विधानसभा में औपचारिक रूप से असंबद्ध सदस्य घोषित कर दिया गया है। इस निर्णय को लेकर विधानसभा सचिवालय की ओर से आदेश भी जारी कर दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि इन विधायकों को अब सदन में अलग स्थान पर बैठने की व्यवस्था की जाएगी और वे समाजवादी पार्टी के विधायकों के साथ अब नहीं बैठ सकेंगे। यह कार्रवाई उन विधायकों के खिलाफ की गई है, जो बीते वर्ष हुए राज्यसभा चुनाव में पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर क्रॉस वोटिंग में शामिल हुए थे।

गौरतलब है कि सपा द्वारा निष्कासित किए गए इन विधायकों में रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज कुमार पांडेय, प्रतापगढ़ के राकेश प्रताप सिंह और गाजीपुर जिले के अभय सिंह शामिल हैं। पार्टी ने इन सभी पर अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया था, खासकर भाजपा उम्मीदवारों को राज्यसभा चुनाव में समर्थन देने को लेकर। इस प्रकरण के बाद समाजवादी पार्टी ने इन्हें तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया था, और अब विधानसभा की प्रक्रिया के तहत उन्हें असंबद्ध घोषित किया गया है।

मनोज पांडेय का राजनीतिक रुख बीते कुछ महीनों से लगातार भाजपा के प्रति झुका हुआ नजर आया है। राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद उन्होंने सपा से नाता लगभग समाप्त कर लिया था और लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा खेमे में उनकी सक्रियता बढ़ती चली गई थी। रायबरेली लोकसभा सीट से टिकट की चर्चाओं में भी उनका नाम सामने आया था, हालांकि अंततः यह टिकट भाजपा ने दिनेश प्रताप सिंह को दिया। इसके बावजूद मनोज पांडेय ने उनके प्रचार में प्रारंभिक रूप से दूरी बनाए रखी, जिससे नाराजगी की अटकलें तेज हो गई थीं। बाद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह स्वयं उनके आवास पर पहुंचे और उनके साथ संवाद किया, जिसके बाद मनोज पांडेय ने सक्रिय रूप से भाजपा के पक्ष में प्रचार किया।

इस घटनाक्रम पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तीखा कटाक्ष करते हुए कहा था कि ये विधायक अब भाजपा के हैं, और यदि भाजपा उन्हें मंत्री बनाना चाहती है तो बना सकती है। उन्होंने तंज भरे लहजे में कहा था, "हमने तकनीकी दिक्कत दूर कर दी है, अब भाजपा की जिम्मेदारी है कि उन्हें मंत्री बनाए। अगली खेप में भी हम कुछ और विधायक इसी तरह से देने को तैयार हैं।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मंत्री बनने के लिए उन्हें सपा की सदस्यता छोड़नी होती, इसलिए सपा ने पहले ही उन्हें निष्कासित कर इस प्रक्रिया को आसान बना दिया है।

राज्य की सियासी हलचल में यह घटनाक्रम विशेष रूप से इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह सिर्फ तीन विधायकों की स्थिति तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले समय में और भी असंतुष्ट विधायकों के पार्टी बदलने की संभावनाओं को बल दे सकता है। भाजपा द्वारा इन असंबद्ध विधायकों को आगे क्या जिम्मेदारी दी जाती है, इस पर भी सियासी विश्लेषकों की निगाहें टिकी हुई हैं।

राजनीति के इस बदलते समीकरण के बीच यूपी विधानसभा का मानसून सत्र और भी दिलचस्प हो सकता है, जहां विपक्षी एकता और दलगत निष्ठा की नई परिभाषाएं सामने आने की पूरी संभावना है।

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