Fri, 24 Oct 2025 11:35:51 - By : Tanishka upadhyay
वाराणसी में लोक आस्था का महापर्व डाला छठ अब केवल एक दिन दूर है। 25 अक्टूबर से आरंभ होने वाले इस चार दिवसीय पर्व को लेकर गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की चहल-पहल बढ़ गई है। लोग पहले ही अपने-अपने पूजन स्थलों को सुरक्षित करने में जुट गए हैं। घाट किनारों पर मिट्टी का घेरा बनाकर, बांस-बल्ली गाड़कर और नाम लिखकर जगह घेरने का सिलसिला पूरे जोरों पर है।
बीएलडब्ल्यू, भैंसासुर घाट से लेकर अस्सी घाट तक हर ओर श्रद्धालुओं की भागदौड़ देखने को मिल रही है। लोग मिट्टी से बने घेरे पर अपना नाम लिखकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि छठ पूजा के दिन उन्हें अपने स्थान पर कोई परेशानी न हो। अब यह परंपरा आदिकेशव घाट तक फैल चुकी है। अस्सी घाट पर भी श्रद्धालुओं ने अपने हिस्से की जगह सुरक्षित कर ली है। बांस और बल्लियों की मदद से घाटों के किनारे अवरोध खड़ा कर दिया गया है ताकि कोई और उस क्षेत्र में प्रवेश न कर सके।
घाट पर मौजूद आस्थावान महिलाओं ने बताया कि भीड़ की वजह से सही स्थान पाना मुश्किल होता है। बबीता ने कहा कि वह दस वर्षों से छठ महापर्व का व्रत करती हैं और इसलिए एक दिन पहले ही मिट्टी से बेदी बनाकर अपनी जगह सुरक्षित कर लेती हैं। सुमन तिवारी ने बताया कि उन्होंने 32 वर्षों से छठ पूजा का व्रत रखा है और इसलिए दो-तीन दिन पहले ही घाट पर पूजा स्थल तैयार कर देती हैं। उन्होंने कहा कि छठ माता से मांगी हुई प्रार्थना से उन्हें संतान का वरदान मिला।
छठ पूजा का संबंध माता षष्ठी देवी से जुड़ा है। शास्त्रों के अनुसार इन्हें भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है और इन्हें कात्यायनी भी कहा जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में इन्हें स्थानीय भाषा में छठ मैइया के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान महिलाएं अपने संतान की सुरक्षा और पूरे परिवार की सुख-शांति के लिए व्रत करती हैं। इसके अतिरिक्त निःसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति का वरदान पाने के लिए भी छठ मैया की पूजा करती हैं।
इस प्रकार डाला छठ के पूर्व ही घाटों पर श्रद्धालुओं की तैयारी और जगह सुरक्षित करने की होड़ ने वाराणसी के घाटों को भक्तिपूर्ण और व्यस्त वातावरण प्रदान कर दिया है। प्रशासन ने भी घाटों पर सुरक्षा और व्यवस्था बढ़ाने के लिए तैयारी शुरू कर दी है, ताकि पर्व के दौरान श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो।