Thu, 10 Jul 2025 15:49:51 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
वाराणसी: भारत की सबसे प्राचीन और आध्यात्मिक नगरी काशी ने एक बार फिर धर्म, संस्कृति और भाईचारे की मिसाल पेश की है। गुरुवार को रामानंदी संप्रदाय के ऐतिहासिक पातालपुरी मठ में ऐसी अद्वितीय तस्वीर उभरी, जिसने देश को ही नहीं, पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत की आत्मा विविधता में एकता से ही सजीव रहती है। इस पावन अवसर पर मुस्लिम समाज की महिलाओं और पुरुषों ने न केवल हिंदू परंपराओं में सहभागिता निभाई, बल्कि जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी महाराज को श्रद्धापूर्वक तिलक लगाकर आरती उतारी और रामनामी अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित भी किया।
गुरुपूर्णिमा के विशेष अवसर पर यह आयोजन सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता, परंपरागत गुरुत्व और मानवीय मूल्यों की पुनर्पुष्टि भी थी। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने जहां दीप जलाकर गुरु परंपरा को नमन किया, वहीं सैकड़ों की संख्या में उपस्थित मुस्लिम श्रद्धालुओं ने गुरुदीक्षा लेकर राष्ट्र के प्रति सेवा और समर्पण का संकल्प लिया। इस दौरान मुस्लिम महिला फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष नाजनीन अंसारी ने कहा कि गुरु के बिना राम तक पहुंच संभव नहीं है, और यही गुरु शिष्य परंपरा भारत की ताकत है।
जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि “रामपंथ एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है, जो व्यक्ति के भीतर दया, प्रेम, करुणा और लोक कल्याण की भावना जगाता है। इस मठ के द्वार सभी के लिए खुले हैं, यहां कोई भेद नहीं, कोई मना नहीं। भारत की भूमि पर रहने वाला हर व्यक्ति अपने डीएनए, संस्कृति, और परंपरा से जुड़ा हुआ है। किसी को धर्म या जाति के नाम पर अलग करना हमारे मूल्यों के खिलाफ है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राम का नाम हिंसा का नहीं, बल्कि प्रेम और शांति का प्रतीक है, और राम के मार्ग पर चलकर ही विश्व में स्थायी शांति लाई जा सकती है।
गुरुदीक्षा प्राप्त करने वालों में शहाबुद्दीन तिवारी, मुजम्मिल, फिरोज, अफरोज, सुल्तान, नगीना और शमशुनिशा जैसे नाम शामिल हैं, जिनके चेहरों पर प्रसन्नता और आंखों में भावनाओं का सैलाब साफ दिख रहा था। शहाबुद्दीन तिवारी ने कहा, “हमारे पूर्वज इसी मठ से जुड़े हुए थे। पूजा-पद्धति भले बदली हो, पर संस्कृति, रक्त और पहचान नहीं बदलती।” वहीं नौशाद अहमद दूबे ने गुरु के प्रति श्रद्धा को भारतीय संस्कृति की आत्मा बताया और कहा कि जहां ज्ञान है, वहां भेदभाव नहीं हो सकता।
इस विशेष आयोजन में जगद्गुरु महाराज ने आदिवासी समाज के बच्चों को भी दीक्षा प्रदान की और उन्हें भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने मुस्लिम समाज से अपील करते हुए कहा कि “आप भारत की महान संस्कृति को दुनियाभर में फैलाएं और अपने पूर्वजों से जुड़े रहें।”
पातालपुरी मठ का यह कार्यक्रम सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता, आपसी सद्भाव, और भारत की सनातन संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति बन गया। इसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की आत्मा न किसी संप्रदाय में बंटी है, न किसी भाषा, जाति या रीति-रिवाज में बंधी है। यहां गुरु भी एक हैं और शिष्य भी सबके लिए समान, सबके लिए प्रेरणास्रोत।
काशी की धरती से निकला यह संदेश, आने वाले समय में केवल एक घटना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण की एक ऐतिहासिक मिसाल बन सकता है।