Thu, 18 Sep 2025 11:06:33 - By : Shriti Chatterjee
वाराणसी की काशी नगरी में पितृपक्ष के अवसर पर इस वर्ष एक अनोखा बदलाव देखने को मिल रहा है। तर्पण और पिंडदान की परंपरा, जो सदियों से गंगा घाटों और पिशाच मोचन कुंड पर प्रत्यक्ष उपस्थिति के साथ होती रही है, अब आधुनिक तकनीक के साथ जुड़ चुकी है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग भी अब कैमरे और लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से काशी से जुड़े हुए हैं और अपने पूर्वजों के लिए श्राद्धकर्म करा रहे हैं।
पिशाच मोचन कुंड पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। यहां कुछ पंडित पारंपरिक तरीके से सामने बैठे यजमानों के साथ अनुष्ठान कराते हैं तो वहीं एक अलग दृश्य भी दिखाई देता है। ट्राइपॉड पर लगे कैमरे और मोबाइल फोन से जुड़े पंडित मंत्रोच्चारण करते हैं और दूर देशों में बैठे लोग स्क्रीन पर इस पूरे अनुष्ठान को सीधा देख पाते हैं। यह तरीका उन परिवारों के लिए राहत का साधन बन गया है, जो दूरी या स्वास्थ्य कारणों से काशी तक नहीं पहुंच पाते।
आचार्य मोहित उपाध्याय बताते हैं कि कई यजमान ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और लंदन जैसे देशों में रहते हैं। वे भारतीय परंपरा से गहरा लगाव रखते हैं और अपने पूर्वजों का पिंडदान काशी में ही कराना चाहते हैं। ऐसे परिवार पंडितों से संपर्क कर अपने गोत्र और वंश की जानकारी साझा करते हैं। इसके बाद संकल्प मोबाइल पर ही कराया जाता है और पूजा की विधि शुरू होती है। पूजा पूरी होने पर वीडियो यजमानों को भेजा जाता है, साथ ही वे इसे लाइव भी देख सकते हैं। पंडित QR कोड के जरिए दान स्वीकार करते हैं, हालांकि उनका कहना है कि राशि को लेकर पूजा कभी रोकी नहीं जाती, यजमान जो भी श्रद्धा से देते हैं, उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध की विधि के बारे में पंडितों का कहना है कि यह पूजा चार चरणों में की जाती है। इसमें मंगलाचरण और ऋषि तर्पण से शुरुआत होती है, विष्णु भगवान की आराधना मुक्ति के लिए की जाती है और अंत में कलश स्थापना तथा अन्नदान कराया जाता है। इस प्रक्रिया में तीन पंडित शामिल होते हैं और पूरा अनुष्ठान करीब दो घंटे चलता है। मान्यता है कि इस विधि से पूर्वजों की आत्मा प्रसन्न होती है और घर में सुख शांति आती है।
योगी आलोक, जो लंबे समय से पिशाच मोचन कुंड पर श्रद्धालुओं के लिए अनुष्ठान करा रहे हैं, बताते हैं कि इस बार पितृपक्ष में भीड़ अपेक्षा से कहीं अधिक रही है। खास बात यह है कि ऐसे 150 लोग भी पिंडदान कराने आए, जिन्होंने इस्लाम छोड़कर सनातन धर्म अपनाया है। उन्होंने पहले पितृपक्ष और पिंडदान की परंपरा को समझा, फिर पूरे विधि विधान से अपने पूर्वजों के लिए अनुष्ठान कराया।
पंडितों के अनुसार केवल छह दिनों में लगभग दो लाख लोगों ने काशी के विभिन्न घाटों और कुंडों पर श्राद्धकर्म कराया है। प्रतिदिन करीब 15 से 20 हजार लोग यहां पहुंच रहे हैं। भीड़ और समय की कमी के कारण ऑनलाइन पिंडदान अब एक नया विकल्प बन गया है, जिससे विदेशों में बसे लोग भी अपनी परंपरा से जुड़े रह पा रहे हैं।