Fri, 12 Dec 2025 11:16:04 - By : Palak Yadav
वाराणसी में पुलिस द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन टार्च के बीच माधोपुर इलाके में रह रहे पश्चिम बंगाल के वीरभूमि से आए कामगारों ने चिंता जताई है और कहा है कि उन्हें गलत तरीके से रोहिंग्या या बांग्लादेशी बताया जा रहा है। इन परिवारों का कहना है कि वे कई दशकों से वाराणसी में रहकर मेहनत मजदूरी के जरिए अपने परिवारों का जीवन चला रहे हैं। वे केवल काम की तलाश में यहां आए थे और उनके सभी दस्तावेज भारत के हैं। कामगारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि उन्हें शांति से अपना जीवन जीने दिया जाए क्योंकि वे किसी सरकारी सहायता की मांग नहीं कर रहे, केवल अपने काम के भरोसे परिवार का भरण पोषण करना चाहते हैं।
माधोपुर बस्ती में रह रहे रबीउल शेख ने बताया कि वे वीरभूमि पश्चिम बंगाल से हैं और करीब 15 साल से वाराणसी में रोजी रोटी कमा रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले चार महीने से उनसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर उनकी फोटो लगाकर उन्हें रोहिंग्या बताया जा रहा है जो पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि बंगाल में रोजगार के साधन सीमित थे इसलिए उनके परिवार ने दशकों पहले वाराणसी आकर काम शुरू किया था। यहां के हालात उस समय बहुत अलग थे और उनके बाप दादा तक उस दौर में एक रुपए में रिक्शा चलाकर परिवार का जीवन चलाते थे।
तीन दिन पहले पुलिस ने माधोपुर इलाके में छापेमारी की थी और यहां रह रहे पश्चिम बंगाल के लगभग 50 परिवारों से पूछताछ की थी। इसके बाद इन सभी लोगों ने अपने दस्तावेज जमा किए हैं। दैनिक भास्कर की टीम ने जब इन परिवारों से बातचीत की तो उन्होंने अपनी स्थिति और अपनी मांग को स्पष्ट किया। उनका कहना है कि वे वैध भारतीय नागरिक हैं और उनके आधार, वोटर कार्ड, राशन कार्ड और अन्य दस्तावेज वीरभूमि पश्चिम बंगाल के पते पर बने हैं। अब तक वे कई बार अपने दस्तावेज पुलिस को दे चुके हैं और पुलिस भी बंगाल जाकर इनकी जांच कर चुकी है।
जहीर शेख, जो पिछले 20 साल से इस बस्ती में रह रहे हैं, ने बताया कि उनके परिवार को भी लगातार कागज जमा करने के लिए कहा गया है। वे कहते हैं कि यदि पुलिस को कोई संदेह है तो वह उनके पते पर जाकर सत्यापन कर ले। उन्होंने बताया कि वे अपने बच्चों समेत यहीं पले बढ़े हैं लेकिन वोटर सूची में उनका नाम अभी भी वीरभूमि में दर्ज है। वे हर कुछ महीनों पर अपने गांव भी जाते हैं और फिर वापस वाराणसी आकर काम में लग जाते हैं। उनके अनुसार गलत आरोप लगाने से पहले दस्तावेजों की जांच जरूरी है क्योंकि इस तरह की स्थिति से पूरा परिवार मानसिक तनाव में रहता है।
बस्ती के एक अन्य निवासी मुदु शेख ने बताया कि वे 25 साल पहले बंगाल से वाराणसी आए थे और उस समय यहां रिक्शा चलाकर जीवन यापन करते थे। समय के साथ उन्होंने कबाड़ का काम शुरू किया और आज भी उसी से परिवार का पेट चलाते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने थाने में सभी दस्तावेज जमा कर दिए हैं और उम्मीद है कि पुलिस एक बार फिर बंगाल जाकर उनके दस्तावेजों की जांच कर ले ताकि इस पूरे मामले पर किसी भी तरह का संदेह न बचे।
नबीउल शेख, जो पिछले 15 साल से वाराणसी में काम कर रहे हैं, बताते हैं कि पिछले चार पांच महीने में पुलिस कई बार बस्ती में आई है और दस्तावेज लेकर गई है। इसके बावजूद सोशल मीडिया पर उन्हें रोहिंग्या या बांग्लादेशी कहकर गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। उनका कहना है कि वे भारत के नागरिक हैं और उनके सभी दस्तावेज इस बात की पुष्टि करते हैं। वे केवल एक सुरक्षित और शांत माहौल में काम करना चाहते हैं।
इन परिवारों का साझा संदेश यही है कि वे भारत के नागरिक हैं और अपनी मेहनत से जीवन चला रहे हैं। वे किसी सहायता की मांग नहीं कर रहे और केवल यह चाहते हैं कि बिना कारण उन्हें संदेह के दायरे में न रखा जाए। वे उम्मीद कर रहे हैं कि पुलिस उचित जांच पूरी कर उन्हें राहत प्रदान करेगी और समाज में फैल रही गलतफहमियों को दूर करेगी।