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वाराणसी में अन्नकूट पर्व पर मंदिरों में लगा छप्पन भोग, 5000 क्विंटल प्रसाद अर्पित

वाराणसी में अन्नकूट पर्व पर मंदिरों में लगा छप्पन भोग, 5000 क्विंटल प्रसाद अर्पित

दीपावली के बाद वाराणसी में अन्नकूट पर्व धूमधाम से मनाया गया, 500 से अधिक मंदिरों में 5000 क्विंटल भोग चढ़ाकर देवी-देवताओं का श्रृंगार किया गया।

वाराणसी: दीपावली के अगले दिन अन्नकूट पर्व पर काशी पूरी तरह भक्ति और उल्लास में डूबी रही। शहर के 500 से अधिक छोटे-बड़े मंदिरों में करीब 5000 क्विंटल मिठाई और विभिन्न व्यंजनों से देवी-देवताओं का श्रृंगार किया गया। मां अन्नपूर्णा मंदिर में 511 क्विंटल यानी 51 हजार 100 किलो व्यंजनों का भोग अर्पित किया गया। इस विशाल भोग की तैयारी में 105 कारीगरों ने दिन-रात मेहनत की और माता के लिए 56 प्रकार के भोग तैयार किए। इस अवसर के लिए नेपाल, केरल और तमिलनाडु से खास मसाले और शुद्ध घी मंगवाया गया ताकि पारंपरिक स्वाद और पवित्रता बनी रहे।

शहर के प्रमुख मंदिरों में भी भव्य आयोजन हुए। दुर्गा मंदिर में 100 क्विंटल, काशी विश्वनाथ मंदिर में 21 क्विंटल, राम मंदिर और गोपाल मंदिर में 51-51 क्विंटल, वहीं कालभैरव, बटुक भैरव और श्रीकृष्ण मंदिर में 21-21 क्विंटल भोग अर्पित किया गया। धर्मसंघ स्थित मणि मंदिर में पांच हजार से अधिक घरों से तैयार भोग लाकर प्रभु को अर्पित किया गया। मंदिर में 101 क्विंटल के 56 भोग का श्रृंगार हुआ और परिसर को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया। यहां 500 बटुकों ने गणेश वंदना और मंगल वाचन किया जिससे वातावरण भक्तिमय हो उठा।

अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी ने बताया कि इस वर्ष माता को 57 प्रकार की मिठाइयों और 17 तरह की नमकीन का भोग लगाया गया है। उन्होंने कहा कि अन्नकूट केवल प्रसाद नहीं, बल्कि अन्न की पवित्रता और कृतज्ञता का उत्सव है। मंदिर में सुबह से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। भोग आरती के बाद जब प्रसाद वितरण शुरू हुआ तो हर तरफ श्रद्धा और उत्साह का दृश्य दिखाई दिया।

मणि मंदिर प्रमुख जगजीत ने बताया कि इस बार भोग तैयार करने में शहर के हजारों परिवारों ने हिस्सा लिया। लगभग पांच हजार लोगों ने अपने घरों में पकवान बनाकर उन्हें मंदिर में भोग के रूप में अर्पित किया। बटुक शनि पांडेय ने बताया कि पूरे मंदिर को व्यंजनों और पुष्पों से सजाया गया है, हर भक्त ने अपने सामर्थ्य अनुसार प्रसाद चढ़ाया है।

काशी के बांके बिहारी मंदिर में भी भक्तों ने 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित किए जिनमें रोटी, पूड़ी, कचौड़ी, मिठाई, फल और मेवे शामिल थे। भोग आरती के दौरान मंदिर प्रांगण भक्ति गीतों और घंटियों की गूंज से भर गया।

पंडित विकास पांडेय ने बताया कि अन्नकूट पर्व की पौराणिक मान्यता द्वापर युग से जुड़ी है। जब भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से इंद्र पूजन का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वर्षा से जीवन संभव होता है। तब श्रीकृष्ण ने समझाया कि वर्षा का श्रेय गोवर्धन पर्वत को जाता है और उन्होंने सभी को गोवर्धन पूजन करने का उपदेश दिया। इससे इंद्र क्रोधित हुए और ब्रज में घनघोर वर्षा की, तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठिका अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सबको सुरक्षित रखा। उस दिन से ही अन्नकूट पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।

काशी में यह परंपरा आज भी उसी श्रद्धा और भाव से निभाई जा रही है। पूरे शहर में मंदिरों की घंटियों और आरतियों की ध्वनि के साथ भक्ति, प्रसाद और सेवा की भावना हर ओर देखने को मिली। इस भव्य आयोजन ने एक बार फिर दिखा दिया कि काशी न केवल आध्यात्मिक नगरी है बल्कि आस्था और अन्न के सम्मान की भी प्रतीक है।

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