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काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भोजपुरी लोकधारा कार्यशाला, पांचवां दिन आकर्षण का केंद्र

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भोजपुरी लोकधारा कार्यशाला, पांचवां दिन आकर्षण का केंद्र

वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भोजपुरी लोकगीत और चित्रकला पर राष्ट्रीय कार्यशाला, परंपराओं को संरक्षित करने का प्रयास।

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भोजपुरिया लोकधारा को नई ऊर्जा देने वाली राष्ट्रीय कार्यशाला इन दिनों आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। कला संकाय अंतर्गत भोजपुरि अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित यह विशेष कार्यशाला 17 से 23 नवंबर 2025 तक चल रही है और आज इसका पांचवा दिन है। यह आयोजन भोजपुरी लोकगीत, लोककला और चित्रांकन जैसी परंपराओं को समझने, सीखने और संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।

कार्यशाला का विषय भोजपुरी लोकगीत और चित्रकला पर केंद्रित है, जिसमें प्रतिभागियों को पाठ, गायन और चित्रांकन का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आयोजन के संरक्षक कला संकाय के डीन प्रो. सुशमा सिद्धांत हैं, जबकि कार्यशाला का संयोजन भोजपुरि अध्ययन केंद्र के प्रो. प्रभाकर सिंह कर रहे हैं। सह संयोजक डॉ. कंचन स्वरूप सिंह और आयोजन सचिव डॉ. कुमार अंतर्वेधी चंचल पूरे कार्यक्रम को सुव्यवस्थित रूप से संचालित कर रहे हैं।

इस कार्यशाला में भोजपुरी लोकगीतों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उनकी सांस्कृतिक जड़ें विस्तार से समझाई जा रही हैं। सोहर, विदेसिया, निर्गुण, कजरी, फगुआ, बिरहा, आल्हा और देवी गीत जैसी शैलियों पर विशेष फोकस रखा गया है ताकि नई पीढ़ी इन परंपराओं का स्वरूप और महत्व बारीकी से समझ सके।

इसके साथ ही चित्रांकन, लोकवादन, लोकनृत्य और गायन जैसे प्रायोगिक सत्र भी प्रतिदिन आयोजित हो रहे हैं। प्रतिभागी न केवल लोककला का इतिहास जान रहे हैं, बल्कि पारंपरिक तकनीकों को अभ्यास के माध्यम से सीख भी रहे हैं।

कार्यशाला में प्रवासी भोजपुरी समाज की सांस्कृतिक विरासत, लोककला के सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम, पर्यावरण आधारित लोकगीतों की उपयोगिता और पारंपरिक गीतों की विविधता पर भी विस्तृत चर्चा की जा रही है। आयोजकों का कहना है कि यह कार्यक्रम उन सभी लोगों के लिए लाभकारी है जो भोजपुरी संस्कृति, लोककलाओं और उनकी समृद्ध परंपराओं को समझने और आगे बढ़ाने में रुचि रखते हैं।

यह कार्यशाला न केवल कला और संस्कृति के शिक्षार्थियों के लिए ज्ञान का महत्व रखती है, बल्कि अपने क्षेत्रीय लोकधरोहर के प्रति लोगों में जागरूकता और गर्व भी बढ़ा रही है।

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