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२३ अक्टूबर को मनाई जाएगी भगवान चित्रगुप्त जयंती, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और संपूर्ण विधि-विधान

२३ अक्टूबर को मनाई जाएगी भगवान चित्रगुप्त जयंती, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और संपूर्ण विधि-विधान

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वितीया को २३ अक्टूबर को भगवान चित्रगुप्त जयंती मनाई जाएगी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि।

चित्रगुप्त पूजन: सनातन परंपरा में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, जो इस वर्ष २३ अक्टूबर, गुरुवार को पड़ रही है, भगवान चित्रगुप्त की जयंती के रूप में पूरी आस्था और उल्लास के साथ मनाई जाएगी। यह पर्व विशेष रूप से कायस्थ समाज के साथ-साथ समस्त हिंदू श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्व रखता है, क्योंकि भगवान चित्रगुप्त को कर्मों के लेखपाल, न्याय के देवता और सत्य के रक्षक के रूप में पूजा जाता है।

पूजन का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि २२ अक्टूबर की रात ०८:१६ बजे से प्रारंभ होकर २३ अक्टूबर की रात १०:४६ बजे तक रहेगी। इस दिन चित्रगुप्त पूजन का सर्वाधिक शुभ और फलदायी समय दोपहर ०१:१३ बजे से ०३:२८ बजे तक निर्धारित किया गया है। यह अवधि अभिजीत मुहूर्त और लाभ काल के संयोग से बन रही है, जो सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों, विशेषकर देव आराधना के लिए अत्यंत उत्तम मानी गई है।

पूजन की संपूर्ण विधि-विधान
भगवान चित्रगुप्त की पूजा एक विशेष और व्यवस्थित विधि से की जाती है। सबसे पहले प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र, अधिमानतः पीले या सफेद रंग के, धारण करने चाहिए। इसके पश्चात पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करके वहां एक चौकी स्थापित करें। इस चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा या चित्र स्थापित करना चाहिए।

पूजन सामग्री के रूप में रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, फल, मिठाई, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) और धूप-दीप तैयार रखें। इस पूजन की एक विशेष बात यह है कि इसमें कलम, दवात और सफेद कागज का विशेष महत्व है, क्योंकि ये लेखन और न्याय के प्रतीक हैं।

पूजा का प्रारंभ 'ॐ श्री गणेशाय नमः' के उच्चारण के साथ करना चाहिए। तत्पश्चात, एक सफेद कागज पर हल्दी से "श्री गणेशाय नमः" लिखें और उसी कलम से "ॐ चित्रगुप्ताय नमः" मंत्र की ग्यारह बार लिखावट करें। इसके बाद भगवान चित्रगुप्त को रोली, चंदन, पुष्प, अक्षत, पंचामृत आदि अर्पित करें और 'ॐ चित्रगुप्ताय नमः' मंत्र का कम से कम ग्यारह बार जाप करें।

पूजन के अंत में इस मंत्र का उच्चारण करना अत्यंत शुभ माना गया है:
"मसिभाजन संयुक्तश्चरसित्वम्! महीतले।
लेखनीकटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते।"

आरती के बाद प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें और परिवार व समाज के बीच वितरित करें। इस पूजन का सार यह है कि मनुष्य अपने कर्म, विचार, वाणी और जिम्मेदारियों के प्रति सजग बने। इस दिन किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन, मांस-मदिरा के सेवन, गंदे वस्त्र धारण करने और कलह-क्रोध से दूर रहने की सलाह दी जाती है, ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।

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