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वाराणसी: रामनगर-प्रधानमंत्री के आगमन से पहले सपा नेता नजरबंद, बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी

वाराणसी: रामनगर-प्रधानमंत्री के आगमन से पहले सपा नेता नजरबंद, बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी

वाराणसी में प्रधानमंत्री के आगमन से पूर्व सपा नेता जितेंद्र यादव मलिक को नजरबंद किया गया जिससे राजनीतिक गहमागहमी बढ़ गई है।

वाराणसी: रामनगर/प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी आगमन से पहले शहर की राजनीति एक बार फिर गरमा गई। रामनगर में समाजवादी पार्टी के तेजतर्रार नेता और बाबा साहब अंबेडकर वाहिनी के जिला अध्यक्ष जितेंद्र यादव मलिक को शनिवार की भोर में सुबह करीब 5 बजे स्थानीय पुलिस द्वारा उनके ही आवास में नजरबंद कर दिया गया। यह कदम शासन-प्रशासन द्वारा कानून-व्यवस्था को लेकर उठाया गया है, लेकिन इस कार्रवाई ने सियासी गलियारों में हलचल तेज कर दी है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी दौरे के मद्देनजर शहर में किसी भी तरह की अस्थिरता या विरोध प्रदर्शन से बचने के लिए सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है। इसी क्रम में जितेंद्र यादव को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया कि वह दिनभर अपने घर से बाहर नहीं निकल सकते, जब तक प्रधानमंत्री का दौरा समाप्त नहीं हो जाता। प्रशासन का यह फैसला “सावधानी की दृष्टि से” बताया गया, मगर सपा खेमे में इसे लेकर तीखा रोष देखने को मिला।

जितेंद्र यादव मलिक, जो अपनी बेबाक आवाज और जमीनी पकड़ के लिए जाने जाते हैं, ने इस कार्रवाई को सरकार की तानाशाही करार देते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, कि "यह लोकतंत्र नहीं, तानाशाही है। भाजपा सरकार विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए हर हथकंडा अपना रही है। हम समाजवादी इस तानाशाही रवैये का पुरजोर विरोध करते हैं और आने वाले चुनाव में इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे।"

अपने घर के भीतर नजरबंद रहने के दौरान भी उन्होंने संघर्ष की आवाज बुलंद रखी। घर की चारदीवारी के भीतर से ही उन्होंने "अखिलेश यादव जिंदाबाद", "समाजवादी पार्टी जिंदाबाद" जैसे नारों के साथ अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया। आसपास के लोगों के मुताबिक, यादव मलिक की आवाज में जो जज़्बा था, उसने घर की दीवारों को भी झकझोर दिया।

इस पूरी घटना ने यह भी दिखा दिया कि वाराणसी की राजनीति कितनी संवेदनशील हो चुकी है, जहां किसी भी संभावित असहमति को पहले ही "नियंत्रित" कर लेने का प्रयास किया जा रहा है। रामनगर की सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा, लेकिन लोगों की निगाहें लगातार इस सियासी घटनाक्रम पर टिकी रहीं। कई स्थानीय नागरिकों ने इस कार्रवाई को "अलोकतांत्रिक" बताते हुए सवाल उठाए कि क्या अब विरोध का भी अधिकार नहीं बचा?

यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री के वाराणसी दौरे से पहले किसी विपक्षी नेता को नजरबंद किया गया हो, मगर जितेंद्र यादव मलिक की भूमिका और उनकी छवि को देखते हुए यह मामला विशेष रूप से चर्चा में आ गया है। सपा कार्यकर्ताओं में भी इस कार्रवाई को लेकर गहरा असंतोष व्याप्त है, और उन्होंने इसे लोकतंत्र के मूल्यों पर चोट बताया।

वाराणसी की फिजाओं में इस वक्त राजनीति की गंध घुल चुकी है। एक ओर प्रधानमंत्री का दौरा, दूसरी ओर विपक्ष की आवाज को बंद करने की कोशिश। शहर का हर कोना सत्ता और संघर्ष के बीच झूल रहा है। नजरबंद किए गए नेता की एक सुबह ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में केवल मंचों से भाषण देने भर से ही जनमत नहीं बनता, कभी-कभी दीवारों के भीतर उठी आवाजें भी इतिहास में दर्ज हो जाती हैं।

सवाल अब यह नहीं कि जितेंद्र यादव मलिक को नजरबंद क्यों किया गया। असली सवाल यह है कि यदि आवाज उठाना अपराध बन जाए, तो लोकतंत्र की आत्मा आखिर कितने दिन जीवित रह पाएगी।

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