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वाराणसी: किन्नर समुदाय ने वरुणा घाट पर की छठ पूजा, यजमानों की खुशहाली को मांगा आशीर्वाद

वाराणसी: किन्नर समुदाय ने वरुणा घाट पर की छठ पूजा, यजमानों की खुशहाली को मांगा आशीर्वाद

वाराणसी के वरुणा घाट पर किन्नर समुदाय ने छठ पर्व पर पूजा कर अपने यजमानों व देश की खुशहाली की कामना की।

वाराणसी: आध्यात्मिक नगरी काशी में इस बार छठ पर्व पर एक अद्भुत और प्रेरणादायक दृश्य देखने को मिला, जब किन्नर समुदाय की व्रती किन्नर नाचते-गाते वरुणा नदी घाट पर पहुंचीं और छठी मइया से अपने यजमानों, देश की खुशहाली और वीर जवानों की सुरक्षा की प्रार्थना की। सोमवार को घाटों पर किन्नर समुदाय की मौजूदगी ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। आस्था और भक्ति से भरे इस माहौल में किन्नर समुदाय ने यह दिखाया कि पूजा, श्रद्धा और संस्कार का कोई वर्ग या सीमा नहीं होती।

किन्नर रूबी, जो बजरडीहा की रहने वाली हैं, पिछले 15 वर्षों से अपने यजमानों की समृद्धि के लिए छठ व्रत रख रही हैं। उन्होंने कहा कि हम लोग साल भर दूसरों के घरों में जाकर बधाइयां देते हैं। इसलिए उन यजमानों के परिवारों की खुशहाली और उनके बच्चों की समृद्धि के लिए हम छठी मइया का कठिन व्रत रखते हैं। यह 36 घंटे का व्रत आसान नहीं होता, लेकिन जब मन में देश और समाज के लिए आशीर्वाद मांगने की भावना होती है तो यह तपस्या सुखद लगती है।

इस मौके पर किन्नर अंशिका ने भी घाट पर सूर्य को अर्घ्य दिया। उन्होंने बताया कि वह पिछले चार वर्षों से इस व्रत को कर रही हैं। अंशिका का कहना था कि यह व्रत वह उन यजमानों के लिए करती हैं, जिनके बच्चों की वह बधाई लेने जाती हैं। उनका कहना था कि समाज हमारे बारे में क्या सोचता है, इससे हमें फर्क नहीं पड़ता। हमें बस यह कामना करनी है कि हमारे यजमान और देश के बच्चे स्वस्थ और खुशहाल रहें।

सुबह से ही वरुणा घाट पर भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा था। इसी बीच करीब 20 से अधिक किन्नर समुदाय के सदस्य मिशनरी बाबा के नेतृत्व में ढोल-नगाड़ों और ताशों की थाप पर थिरकते हुए घाट पर पहुंचे। कई किन्नर अपने माथे से लेकर नाक तक सिंदूर लगाए हुए थे, जो छठी मईया के प्रति उनकी भक्ति का प्रतीक था। राह-राह पर व्रती किन्नरों के ऊपर से न्योछावर की गई मिठाइयां और सिक्के बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए थे।

किन्नर समुदाय की राष्ट्रीय अध्यक्ष सलमा किन्नर ने इस अवसर पर कहा कि जैसे देशभर की माताएं और बहनें छठ पर्व मनाती हैं, वैसे ही हमारा समुदाय भी इस पर्व को पूरे आस्था के साथ मनाता है। उन्होंने बताया कि यह व्रत उन यजमानों, सीमा पर तैनात सैनिकों और पुलिसकर्मियों के लिए रखा जाता है जो देश और समाज की रक्षा में लगे हैं। उन्होंने बताया कि किन्नर समुदाय द्वारा सबसे पहले इंदौर में नौ वर्ष पूर्व छठ पर्व मनाया गया था। उसी परंपरा को अब वाराणसी में पिछले चार सालों से निभाया जा रहा है।

घाट पर व्रती किन्नर रूबी और अंशिका के साथ अन्य महिलाओं ने वेदी के पास बैठकर छठी मइया के गीत गाए और फिर सूर्यास्त के समय ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया। ढोल और ताशे की आवाजें घाट पर गूंजती रहीं, और माहौल भक्ति से भर गया। इसके बाद सभी किन्नरों ने भक्तों से आशीर्वाद लिया और रात में घर लौट गईं। अगली सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर उन्होंने अपने 36 घंटे के व्रत को पूरा किया।

रूबी किन्नर ने कहा कि हमारा समाज भले ही हमें अलग नजर से देखता हो, लेकिन हमारे लिए यजमान ही परिवार हैं। हम यह व्रत इसलिए रखते हैं कि हमारे यजमान सुखी रहें, समृद्ध रहें। क्योंकि जब वे खुश होंगे, तभी हम भी प्रसन्न रहेंगे। यही हमारे जीवन का आधार है।

इस छठ पर्व पर किन्नर समुदाय की भागीदारी ने न केवल धार्मिक आस्था को नया आयाम दिया, बल्कि समाज को यह सन्देश भी दिया कि भक्ति और विश्वास का कोई वर्ग, धर्म या लिंग नहीं होता। आस्था सबको जोड़ती है, और यही काशी की पहचान है।

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