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नीदरलैंड का परिवार वाराणसी में तलाश रहा 116 साल पुराने पूर्वजों की जड़ें, पहुंचा चौबेपुर

नीदरलैंड का परिवार वाराणसी में तलाश रहा 116 साल पुराने पूर्वजों की जड़ें, पहुंचा चौबेपुर

नीदरलैंड से एक परिवार 116 साल पुराने पारिवारिक इतिहास की कड़ियों को जोड़ने के लिए वाराणसी के चौबेपुर पहुंचा है।

करीब 116 वर्ष पुराने पारिवारिक इतिहास की कड़ियों को जोड़ने के उद्देश्य से नीदरलैंड से एक परिवार मंगलवार को वाराणसी पहुंचा। अपने पूर्वजों की जड़ों की तलाश में आए इस परिवार ने बनारस जनपद के चौबेपुर क्षेत्र को अपना खोज केंद्र बनाया है। पुराने अभिलेखों और दस्तावेजों के सहारे यह परिवार न केवल अपने पूर्वजों के गांव तक पहुंचना चाहता है बल्कि उनसे जुड़े रिश्तों और स्मृतियों को भी फिर से तलाशने का प्रयास कर रहा है। यह यात्रा इतिहास भावनाओं और पहचान से जुड़ी एक अनोखी कहानी को सामने लाती है।

परिवार के सदस्य वेदप्रकाश विजय ने बताया कि उनके दादा स्वर्गीय दुक्खी को ब्रिटिश शासन काल में मजदूरी के लिए विदेश भेजा गया था। अभिलेखों के अनुसार 15 जनवरी 1909 को उन्हें कलकत्ता से सूरीनाम के लिए रवाना किया गया था और वे 22 जनवरी 1909 को वहां पहुंचे थे। सूरीनाम पहुंचने के बाद 22 सितंबर 1909 को उन्हें जंगलों में काम करने के लिए एक ठेकेदार के अधीन नियुक्त किया गया। उसी दौरान उनकी शादी मंगनी मनराज से हुई थी जो उस समय पानी के जहाज में कार्यरत थीं। यह जानकारी उन्हें पारिवारिक दस्तावेजों और ऐतिहासिक अभिलेखों से मिली है जिन्हें परिवार पीढ़ियों से संभाल कर रखे हुए है।

वेदप्रकाश विजय ने बताया कि इन दस्तावेजों में उनके दादा का मूल पता बनारस जनपद के चौबेपुर थाना क्षेत्र स्थित ग्राम बाबड़पुर दर्ज है। इसी पते के आधार पर वे अपने परिवार के साथ भारत आए हैं। मंगलवार को वे अपनी पत्नी चंद्रावती और परिवार की सदस्य शिवानी व पूजा के साथ चौबेपुर थाने पहुंचे और पुलिस को सभी उपलब्ध दस्तावेज दिखाए। उन्होंने पुलिस से गांव और आसपास के क्षेत्रों के बारे में विस्तार से जानकारी ली ताकि खोज को सही दिशा दी जा सके।

पुलिस ने परिवार को ग्राम बाबड़पुर बाबतपुर गांव चोलापुर क्षेत्र और बाबतपुर एयरपोर्ट के आसपास के इलाकों की जानकारी दी। अधिकारियों ने बताया कि पुराने समय में कई परिवारों का स्थानांतरण हुआ है इसलिए जानकारी जुटाने में समय लग सकता है। पहले दिन की तलाश के दौरान परिवार को अपने पूर्वजों या उनसे जुड़े किसी रिश्तेदार के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी। इसके बावजूद परिवार ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अपनी खोज को आगे बढ़ाने का संकल्प जताया।

वेदप्रकाश विजय ने कहा कि यह यात्रा केवल एक गांव या पते की खोज नहीं है बल्कि अपनी पहचान और विरासत से दोबारा जुड़ने का प्रयास है। उन्होंने बताया कि बुधवार को वे बाबतपुर गांव जाकर सीधे ग्रामीणों से बातचीत करेंगे और बुजुर्गों से पुराने समय की जानकारी एकत्र करने की कोशिश करेंगे। उनका मानना है कि गांव के लोग और मौखिक इतिहास उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में कुछ अहम संकेत दे सकता है।

परिवार के सदस्यों का कहना है कि विदेश में रहते हुए भी भारत और बनारस की स्मृतियां उनके परिवार की कहानियों में जीवित रही हैं। अब उसी इतिहास को प्रत्यक्ष रूप से महसूस करने के लिए वे यहां आए हैं। वाराणसी और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में की जा रही यह खोज न केवल एक परिवार की निजी यात्रा है बल्कि उन हजारों भारतीयों की कहानी को भी दर्शाती है जिन्हें ब्रिटिश काल में मजदूरी के लिए विदेश भेजा गया था और जिनकी जड़ें आज भी भारतीय गांवों में मौजूद हैं।

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