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जौनपुर: 47 साल पुराने विवाद में पुलिस ने खाली कराई जमीन, जमकर हुआ विरोध

जौनपुर: 47 साल पुराने विवाद में पुलिस ने खाली कराई जमीन, जमकर हुआ विरोध

जौनपुर के पराऊगंज में 47 साल पुराने जमीनी विवाद में प्रशासन ने बलपूर्वक कब्जा हटवाया, जिसके दौरान भारी हंगामा हुआ।

जौनपुर: जलालपुर थाना क्षेत्र स्थित पराऊगंज बाजार सोमवार को दिनभर अफरा-तफरी और हंगामे का गवाह बना। करीब 47 साल पुराने जमीनी विवाद में अदालत के आदेश पर पुलिस और प्रशासन ने कब्जा हटवाया। ध्वस्तीकरण की इस कार्रवाई के दौरान भारी विरोध हुआ और माहौल कई बार बेकाबू हो गया। महिलाओं ने सड़क पर लेटकर रास्ता रोका, आत्मदाह की कोशिश की और गैस सिलिंडर तक लेकर पहुंच गईं। पांच घंटे तक तनावपूर्ण हालात बने रहे, लेकिन अंततः जमीन को खाली करा दिया गया।

इस विवाद की शुरुआत वर्ष 1978 में हुई थी, जब साढ़े चार बिस्वा भूमि पर कब्जे को लेकर मुकदमा दायर किया गया। लंबी अदालती लड़ाई के बाद 14 सितंबर 2023 को अदालत ने वादी अरुण कुमार दुबे के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद हरिदास, कामता, रामचंद्र, छोटेलाल और हरिलाल को जमीन खाली करने के लिए नोटिस जारी किया गया। बावजूद इसके जब कब्जा नहीं छोड़ा गया तो अदालत ने पुलिस अधीक्षक को पत्र भेजकर बल प्रयोग से जमीन खाली कराने का आदेश दिया। वादी की ओर से कोर्ट में पुलिस बल की तैनाती के लिए एक दिन का वेतन भी जमा कराया गया था।

सोमवार को अदालत के अमीन सुनील कुमार सरोज भारी पुलिस बल और चार जेसीबी मशीनों के साथ पराऊगंज बाजार पहुंचे। जैसे ही कार्रवाई शुरू हुई, विरोध तेज हो गया। कब्जाधारियों ने अदालत अमीन से हाथापाई की और छप्पर में आग लगा दी। वहीं, महिलाएं बार-बार सड़क पर लेटकर रास्ता रोकती रहीं। कुछ ने तो गैस सिलिंडर में आग लगाने का प्रयास किया और आत्मदाह की धमकी दी।

प्रभारी निरीक्षक गजानंद चौबे ने बताया कि महिला पुलिसकर्मियों की मदद से विरोध कर रही महिलाओं को काफी समझाकर सड़क से हटाया गया। हालांकि वे लगातार चिल्लाती और खुद को आग लगाने की कोशिश करती रहीं। इसके बावजूद प्रशासनिक सख्ती और पुलिस की मौजूदगी में ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया शाम पांच बजे तक जारी रही।

इस पूरी कार्रवाई में कब्जाधारियों का सारा सामान खुले आसमान के नीचे आ गया। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि जिस परिवार के नाम पर पराऊगंज बाजार की पहचान बनी, वही परिवार अब बेघर हो गया। बाजार का नाम स्वर्गीय पराऊ सरोज के नाम पर रखा गया था और यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित है। अब उसी परिवार को अदालत के आदेश पर अपना घर खाली करना पड़ा।

यह कार्रवाई एक ओर कानून के राज और अदालती फैसले के पालन की मिसाल बनी, तो दूसरी ओर मानवीय पीड़ा का चेहरा भी सामने आया। बाजार की भीड़भाड़ और तनावपूर्ण माहौल में लोग दिनभर घटनाक्रम को देखते रहे। आखिरकार, 47 साल पुराने इस विवाद का पटाक्षेप हुआ, लेकिन कब्जा खोने वाले परिवार के लिए यह दिन जीवनभर की सबसे बड़ी त्रासदी साबित हुआ।

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