उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा चर्चा में रहने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अब हिंदुत्व की पिच पर तेजी से दौड़ रहे हैं। कभी क्षत्रिय एकता के प्रतीक और बाहुबली छवि के लिए जाने जाने वाले राजा भैया ने अब अपनी सियासी रणनीति को धार्मिक रंग देना शुरू कर दिया है। जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजा भैया हाल ही में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सनातन हिंदू एकता पदयात्रा में शामिल हुए।
धीरेंद्र शास्त्री की यह यात्रा 7 नवंबर से 16 नवंबर तक दिल्ली से वृंदावन तक चल रही है। यात्रा का उद्देश्य हिंदू एकता और सनातन संस्कृति के संदेश को फैलाना बताया जा रहा है। इस दौरान राजा भैया ने भी “जात पात की करो विदाई, हम सब हिंदू भाई भाई” का नारा बुलंद किया। लेकिन राजनीतिक हलकों में यह सवाल गूंजने लगा है कि क्या राजा भैया का यह कदम महज धार्मिक समर्थन दिखाने के लिए है या इसके पीछे 2027 के विधानसभा चुनावों की रणनीतिक तैयारी छिपी है।
राजा भैया का राजनीतिक सफर हमेशा से दिलचस्प रहा है। प्रतापगढ़ जिले की कुंडा सीट से कई बार निर्दलीय जीत दर्ज कर चुके राजा भैया ने अपनी खुद की पार्टी, जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) बनाई। वर्तमान में उनकी पार्टी के दो विधायक और एक एमएलसी हैं। लोकसभा चुनाव में भले ही उन्होंने अपनी पार्टी को दूर रखा, लेकिन अब 2027 की तैयारी को देखते हुए उनका फोकस हिंदुत्व पर केंद्रित होता दिख रहा है।
राजा भैया ने अपने हालिया बयानों में कहा कि हिंदुत्व से अलग भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि भारत आज धर्मनिरपेक्ष इसलिए है क्योंकि यहां हिंदू बहुलता है। उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए कहा कि जहां-जहां हिंदू कम हुए, वहां-वहां से हिंदू संस्कृति मिट गई। पाकिस्तान में पहले 27 फीसदी हिंदू थे जो अब 1 फीसदी रह गए हैं, वहीं बांग्लादेश में 28 फीसदी से घटकर 8 फीसदी बचे हैं।
राजा भैया के इस बयान को राजनीतिक विश्लेषक नए सियासी अध्याय की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि वह उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के क्षेत्रीय संस्करण को मजबूत करने की कोशिश में हैं। भाजपा के पहले से स्थापित हिंदुत्व एजेंडे के बीच उनकी रणनीति सीमित प्रभाव वाली हो सकती है, लेकिन प्रतापगढ़ और आसपास के जिलों में उनका प्रभाव अभी भी मजबूत है।
राजा भैया के करीबी और एमएलसी कुंवर अक्षय प्रताप सिंह गोपाल का कहना है कि राजा भैया हमेशा से समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं। उनका हिंदुत्व किसी विशेष राजनीतिक मकसद से नहीं बल्कि सांस्कृतिक एकता की भावना से प्रेरित है। वहीं दूसरी ओर कुछ राजनीतिक जानकार इसे 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले समर्थन आधार बढ़ाने की कवायद मानते हैं।
धार्मिक मंचों पर बढ़ती सक्रियता और बागेश्वर धाम जैसे लोकप्रिय धार्मिक आयोजनों में उनकी मौजूदगी इस बात का संकेत है कि राजा भैया अब अपनी छवि को बाहुबली से हटाकर सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। हालांकि यह देखना बाकी है कि हिंदुत्व की इस पिच पर उनकी यह नई रणनीति उन्हें कितना सियासी फायदा दिला पाती है।
राजा भैया ने बदली सियासी रणनीति, धीरेंद्र शास्त्री संग बुलंद किया हिंदुत्व का नारा

उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजा भैया अब हिंदुत्व की पिच पर दौड़ रहे हैं, धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा में शामिल होकर 2027 की तैयारी।
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