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वाराणसी: रामनगर रामलीला में जनकपुर से अयोध्या पहुंची राम-सीता की बारात, चारों ओर छाया हर्षौल्लास

वाराणसी: रामनगर रामलीला में जनकपुर से अयोध्या पहुंची राम-सीता की बारात, चारों ओर छाया हर्षौल्लास

रामनगर रामलीला में जनकपुर से राम-सीता और चारों भाइयों की विदाई ने दर्शकों को भावुक किया, अयोध्या में भव्य स्वागत हुआ।

वाराणसी: विश्वविख्यात रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला का आठवां दिन भव्यता और भक्ति का अद्भुत संगम लेकर आया। शनिवार की रात राम-सीता विवाह उपरांत विदाई और बारात के अयोध्या आगमन का भावनात्मक प्रसंग मंचित किया गया। एक ओर जनकपुर में विदाई का करुण दृश्य दर्शकों की आंखें नम कर गया, वहीं दूसरी ओर अयोध्या पहुंचते ही उल्लास और हर्षोल्लास का वातावरण बन गया।

रामायण के इस अमर प्रसंग को जीवंत करते हुए रामलीला के कलाकारों ने ऐसा अलौकिक वातावरण प्रस्तुत किया कि उपस्थित हजारों श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। महाराज जनक के आदेश के बाद राम-सीता और चारों भाइयों की बारात विदाई के लिए तैयार हुई। माता सुनैना जब चारों दामादों से विदा लेती हैं तो करुण भावनाओं का समुद्र उमड़ पड़ता है। महाराज जनक अपनी पुत्रियों सीता, मांडवी, उर्मिला और श्रुतकीर्ति को पालकियों में बैठाते समय अत्यंत व्याकुल दिखते हैं। दर्शक दीर्घा में बैठी भीड़ इस भावुक दृश्य के साथ स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस करती रही।

इसके विपरीत, जैसे ही बारात अयोध्या पहुंची, वातावरण पूरी तरह बदल गया। नगाड़ों और शहनाइयों की गूंज, जयकारों का शोर और उत्सव का उल्लास चारों ओर बिखर गया। महारानी कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी ने नववधुओं का परिछन कर उनका स्वागत किया। महल के द्वार पर पालकी खुलते ही "सीता-राम" की गगनभेदी जयकार गूंजी और पूरा वातावरण राममय हो उठा। बहुओं को महल में ले जाकर पतियों के साथ सिंहासन पर विराजमान कराया गया।

लीला के इस प्रसंग में एक विशेष दृश्य तब आया जब महाराज दशरथ ने पुत्रवधुओं की ओर इशारा करते हुए रानियों से कहा , कि "ये सब अभी ललिका हैं, पराए घर से आई हैं, इनको अपनी पलकों की तरह संभालना।" यह वाक्य सुनकर मंच और दर्शक दोनों ही भावविभोर हो उठे। तत्पश्चात माता कौशल्या ने भगवान राम से पूरी यात्रा और धनुष यज्ञ के प्रसंगों को सुनने की इच्छा व्यक्त की, जिस पर राम ने कहा कि सब कुछ माता-पिता और गुरुओं के आशीर्वाद से ही संभव हुआ है।

इस अवसर पर एक रोचक प्रसंग भी प्रस्तुत किया गया जिसने दर्शकों को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया। जब बारात के स्वागत के बाद राजा दशरथ ने जनकपुर की आतिथ्य भावना की प्रशंसा की तो उन्होंने खास तौर पर अमावट की चटनी का उल्लेख किया। उन्होंने हंसते हुए कहा,"अमावट की चटनी इतनी स्वादिष्ट थी कि सब खा-खा कर भी अघा नहीं पाए।" यह सुनकर दर्शक दीर्घा ठहाकों से गूंज उठी और माहौल में हल्की-फुल्की हंसी का रंग भी घुल गया।

लीला का समापन गुरु विश्वामित्र के आश्रम वापसी के प्रसंग से हुआ। राजा दशरथ ने उन्हें विदा किया और माता कौशल्या ने सभी आठ मूर्तियों की आरती उतारी। इस प्रकार आठवें दिन की कथा का विश्राम हुआ, लेकिन राम-सीता विवाह और विदाई का भावनात्मक संगम सभी दर्शकों के मन में अमिट छाप छोड़ गया।

रामनगर की रामलीला, जिसे यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है, का प्रत्येक दिन भक्ति, अध्यात्म और सांस्कृतिक समृद्धि का जीवंत उदाहरण पेश करता है। आठवें दिन के इस प्रसंग ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि यह परंपरा केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और समाज के गहरे ताने-बाने की झलक भी है।

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