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वाराणसी: रामनगर/शास्त्री जी के घर के पास कूड़ा डंपिंग पर गरजे पूर्व सभासद, गाड़ी के आगे लेटकर जताया विरोध

वाराणसी: रामनगर/शास्त्री जी के घर के पास कूड़ा डंपिंग पर गरजे पूर्व सभासद, गाड़ी के आगे लेटकर जताया विरोध

रामनगर में नगर निगम की लापरवाही से कूड़ा डंपिंग के खिलाफ भाजपा के पूर्व सभासद संतोष शर्मा ने किया विरोध, जिससे इलाके में महामारी का खतरा मंडरा रहा है।

वाराणसी: रामनगर/गंगा के तट पर बसा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी रामनगर, जहां हर कदम पर विरासत की खुशबू रची-बसी है, वहीं अब उसी धरती पर नगर निगम की लापरवाही महामारी के खतरे को न्योता दे रही है। आज सुबह वार्ड नंबर 65, पुराना रामनगर स्थित रामनगर-सामने घाट पुल के नीचे उस वक्त माहौल गरमा गया जब भाजपा के पूर्व सभासद संतोष शर्मा ने नगर निगम की कूड़ा गाड़ी के आगे खुद को लेटाकर कूड़ा डंपिंग का विरोध किया।

यह विरोध केवल एक राजनीतिक कदम नहीं था, बल्कि उस तड़पती जनता की पीड़ा थी, जो महीनों से कूड़े की दुर्गंध, गंदगी और बीमारियों के बीच जीने को मजबूर है। जहां एक ओर सरकार स्वच्छ भारत अभियान की दुहाई देती है, वहीं दूसरी ओर, एक गौरवशाली स्थान जहां से चंद कदमों की दूरी पर भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रतिमा, उनका पैतृक आवास और काशी नरेश का ऐतिहासिक किला स्थित है। वहीं पर खुलेआम कूड़ा गिराया जा रहा है।

स्थानीय लोगों की मानें तो यह इलाका न केवल रिहायशी है, बल्कि पर्यटन और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। रामनगर-सामने घाट पुल से हर दिन हजारों राहगीर, श्रद्धालु, पर्यटक और गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालु गुजरते हैं। देसी-विदेशी सैलानियों का आना-जाना भी लगातार लगा रहता है। बलुआ घाट स्थित मंदिरों में विवाह, यज्ञ और पूजन होते हैं। वहीं कुछ ही महीनों में रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला शुरू होने वाली है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु इसी मार्ग से पहुंचते हैं। भगवान के स्वरूपों के निवास स्थल बलुआ घाट की धर्मशालाएं भी इसी इलाके में हैं।

पूर्व सभासद संतोष शर्मा का कहना है कि उन्होंने कई बार नगर निगम अधिकारियों से इस कूड़ा डंपिंग को रोकने की गुहार लगाई, लेकिन सब कुछ अनसुना कर दिया गया। जब हर दरवाज़ा बंद हो गया, तो अंत में उन्हें धरना और सड़कों पर उतरने का रास्ता चुनना पड़ा। उन्होंने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि अगर कूड़ा गिराने की यह प्रक्रिया बंद नहीं हुई, तो स्थानीय नागरिकों के साथ मिलकर उग्र आंदोलन किया जाएगा, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी नगर निगम प्रशासन की होगी।

मौके पर मौजूद स्थानीय नागरिकों की आंखों में आक्रोश और दिल में डर था। लोगों का कहना था कि कूड़े के ढेर से उठती बदबू ने जीना मुश्किल कर दिया है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई सांस की बीमारियों, मच्छरों के प्रकोप और संक्रमण की आशंका से जूझ रहा है। पहले भी इलाके में डेंगू और बुखार जैसी बीमारियों ने पांव पसारे थे, और अब फिर से वैसी ही स्थिति बनती दिख रही है।

यह केवल एक विरोध नहीं, बल्कि उस संवेदनशील चेतावनी की पहली दस्तक है, जो नगर प्रशासन के कानों तक पहुंचनी चाहिए। यह सवाल सिर्फ रामनगर का नहीं है, बल्कि हर उस नागरिक का है जो अपने शहर में सांस लेने के लिए साफ हवा और जीने के लिए स्वच्छ परिवेश की उम्मीद करता है।

अब देखना यह है कि क्या नगर निगम प्रशासन जागेगा, या फिर रामनगर की ऐतिहासिक धरती को कूड़े की बदबू और जनता के आक्रोश से गुज़रना पड़ेगा। जनता की आवाज़ गूंज उठी है। और जब यह गूंज आंदोलन में बदलती है, तो इतिहास गवाह है कि शासन की नींव तक हिल जाती है।

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