वाराणसी: रामनगर/दीपावली के पावन अवसर पर काशी की धरती पर भक्ति, परंपरा और अदम्य आस्था का अनुपम संगम इस समय रामनगर चौक में अपने शिखर रूप में दिखाई दे रहा है। श्री जय मां महाकाली पूजा समिति द्वारा लगातार 47वें वर्ष भी भव्य काली प्रतिमा की स्थापना की गई है और यह आयोजन आज पूरे पूर्वांचल में परंपरा, एकता और आध्यात्मिक चेतना का प्रेरक केंद्र बन चुका है।
समिति के अध्यक्ष मूलचंद यादव, महामंत्री अनिल कुमार पांडे, संरक्षक विपिन सिंह, अनिल सिंह, बैकुंठ नाथ केशरी, पप्पू खान, राजेंद्र बहेलिया, पूजक नारायण झा और पूर्व महामंत्री सतीश चंद्र श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में इस वर्ष भी तैयारियों को वह भव्यता दी गई है जो इसे सच में अद्भुत और अद्वितीय बना देती है।
रामनगर की इस पूजा की सबसे विशिष्ट पहचान है, हर वर्ष नया मंडप, नई मिट्टी, नया बांस और नई ईंटों से सजी सजावट।
पंडाल न सिर्फ़ बनाया जाता है, बल्कि वैदिक विधि से उसमें शक्ति-आवाहन किया जाता है। पूजा-अर्चना 11 ब्राह्मणों द्वारा पूर्ण शास्त्रोक्त विधान से कराई जाती है।
पूरे आयोजन की अवधि 20 से 22 तक निर्धारित है।
• 20 तारीख: मां की मूर्ति स्थापना
• 21 तारीख : हवन, अनुष्ठान और विशेष अर्पण
• 22 तारीख : भव्य विसर्जन शोभायात्रा।
माँ के मंडप की मिट्टी को प्रसाद माना जाता है और लोग प्रसाद की भांति उसे अपने घर ले जाते हैं। उल्लेखनीय है कि इस परंपरा में मुस्लिम समाज भी वर्षों से भागीदार रहा है, न केवल भक्ति-भाव से, बल्कि कार्य में सहयोग से भी।
रामनगर में यह दृश्य अपने-आप में अनोखा है, जहाँ आस्था जाति नहीं पूछती, धर्म नहीं बाँटती; बस जोड़ती है, समर्पित करती है और एक करती है।
पूरे आयोजन का चरम क्षण वह विसर्जन शोभायात्रा होती है, जिसमें माँ का रथ हाथी और घोड़ों के साथ, नगाड़ों-ढोल, शंखध्वनियों, घंटों और जयकारों के बीच प्रस्थान करता है।
फूलों की वर्षा, भक्ति का ज्वार और दीपों से जगमगाए पथ। इस दृश्य को जो एक बार देख लेता है, वह जीवन भर भूल नहीं पाता। यह केवल शोभायात्रा नहीं, यह शक्ति की विदाई और आशीर्वाद की वापसी का पर्व प्रतीत होता है।
माँ की महिमा का शाश्वत संदेश ये है, कि काली, समय की अधिष्ठात्री, विनाश में निर्माण की जननी, और अन्याय के संहार की सर्वोच्च शक्ति मानी जाती हैं।
माता का यह स्वरूप मनुष्य को संदेश देता है।
• अन्याय का दमन करो
• असत्य को परास्त करो
• भय का अंत करो
• धर्म, साहस, मर्यादा और सत्य के साथ खड़े रहो।
दीपावली की रात्रि, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। उसी रात काली-पूजन भीतर के अंधकार को नष्ट करने का आध्यात्मिक आह्वान है। यही कारण है कि रामनगर काली पूजा केवल अनुष्ठान नहीं, आत्मबल, श्रद्धा, स्मृति और साधना का उत्सव बन जाती है।
चार दशक नहीं, लगभग आधी सदी की परंपरा, और आज भी वही लौ, वही आस्था सन् 1980 के दशक में प्रारंभ हुई यह परंपरा आज लगभग अर्द्धशताब्दी पार कर चुकी है, लेकिन इसकी भव्यता, उत्साह, ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रभाव, समय के साथ और विराट होते गए हैं।
हर वर्ष बढ़ती सहभागिता, बढ़ता जनसमर्थन और निरंतर बढ़ती आस्था यह सिद्ध करती है कि रामनगर की यह पूजा अब केवल परंपरा नहीं, पहचान बन चुकी है।
रामनगर की काली पूजा सचमुच अद्भुत, अनोखी, लाजवाब, अलौकिक और अविस्मरणीय है। यह आयोजन शक्ति-उपासना की शृंखला मात्र नहीं, बल्कि वह दैवीय अनुभूति है जिसमें भक्ति है, परंपरा है, संस्कृति है, एकता है, और माँ की कृपा का महास्वरूप भी।
वाराणसी: रामनगर में 47वें वर्ष भी माँ महाकाली की भव्य पूजा, भक्तों की उमड़ी भीड़

वाराणसी के रामनगर में 47वें वर्ष भी माँ महाकाली की भव्य पूजा का आयोजन हुआ, जो परंपरा, एकता और आस्था का केंद्र बनी।
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