रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला के दसवें दिन का मंचन भक्ति और भावनाओं से परिपूर्ण रहा। इस दिन मंचन की शुरुआत निषादराज के आश्रम से हुई, जहां मंत्री सुमंत श्रीराम को महाराज दशरथ का संदेश लेकर पहुंचे। उन्होंने आग्रह किया कि यदि श्रीराम अयोध्या वापस नहीं लौट सकते, तो माता सीता को ही भेज दें। इस पर माता सीता ने अडिग स्वर में कहा कि वे श्रीराम के चरणों से कभी अलग नहीं होंगी। लक्ष्मण इस प्रसंग में क्रोध से भर उठते हैं और पिता के वचनों पर संदेह व्यक्त करते हैं, लेकिन श्रीराम धैर्य और प्रेम से उन्हें शांत करते हैं।
इसके बाद कथा का सबसे मार्मिक और हृदयस्पर्शी हिस्सा मंचित हुआ, जिसे केवट प्रसंग के रूप में जाना जाता है। राम, सीता और लक्ष्मण जब गंगा तट पर पहुंचे तो भगवान श्रीराम ने एक साधारण केवट की विनती स्वीकार की। केवट प्रभु के चरण धोकर ही उन्हें अपनी नाव में बैठाता है। यह दृश्य दर्शकों को भक्ति की सच्चाई और प्रभु के विनम्र स्वभाव का बोध कराता है। गंगा पार करने के बाद जब श्रीराम पारिश्रमिक देना चाहते हैं, तो केवट भावुक होकर कहता है कि उसकी मजदूरी का सबसे बड़ा फल प्रभु के चरण धोने का अवसर ही है। यह संवाद मंचन देखने वालों के हृदय को गहराई तक छू गया और पूरा वातावरण जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा।
इसके पश्चात माता सीता ने गंगा मैया की पूजा की और रामभक्तगण भारद्वाज ऋषि के आश्रम की ओर बढ़े। वहां ऋषि भारद्वाज ने प्रभु का स्वागत किया और रामकथा का महत्व श्रोताओं के सामने प्रकट हुआ। इसके बाद श्रीराम चित्रकूट की ओर प्रस्थान करते हैं और यमुना पार करते हैं। इस अवसर पर निषादराज प्रभु के साथ चलते हुए विदाई के क्षण में अत्यंत भावुक हो उठते हैं।
चित्रकूट की ओर जाते समय वनवासी और ग्रामवासी प्रभु के दर्शन पाकर आनंद से भर गए। महिलाएं माता सीता से पूछने लगीं कि ये दोनों तेजस्वी पुरुष कौन हैं। कोई महाराज दशरथ को दोष देता तो कोई केकई को और कोई विधाता को। यह दृश्य ग्रामीण समाज की गहरी रामभक्ति और आस्था का प्रतिबिंब था।
इसके बाद श्रीराम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुंचे। वहां हुए संवाद ने वातावरण को और भी मार्मिक बना दिया। जब श्रीराम ने वाल्मीकि से पूछा कि वे कहां निवास करें, तो वाल्मीकि ने कहा कि प्रभु उन हृदयों में रहें जहां रामकथा की धारा कभी थमती नहीं। यह संदेश दर्शकों के मन में गहराई से उतर गया और कथा का आध्यात्मिक स्वरूप और प्रबल हो उठा।
महर्षि वाल्मीकि ने मंदाकिनी नदी के तट पर चित्रकूट में निवास करने का आग्रह किया। वहां श्रीराम ने कुटिया बनाकर अपना जीवन शुरू किया और देवता, कोल, भील उनकी सेवा में लग गए। इस दिव्य और भावपूर्ण प्रसंग के साथ दसवें दिन की लीला का समापन हुआ। अंत में संतों द्वारा आरती की गई और सम्पूर्ण वातावरण रामनाम से गुंजायमान हो उठा।
रामनगर रामलीला: केवट प्रसंग ने दर्शकों को भावविभोर किया, जय श्रीराम के उद्घोष से गूंजा

रामनगर की रामलीला के दसवें दिन केवट प्रसंग का मंचन हुआ, जिसमें केवट ने प्रभु श्रीराम के चरण धोकर अपनी भक्ति का अद्भुत प्रदर्शन किया, जिसने दर्शकों को भावविभोर कर दिया।
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