News Report
TRUTH BEHIND THE NEWS

वाराणसी: रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का गणपति वंदन से हुआ, भव्य शुभारंभ

वाराणसी: रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का गणपति वंदन से हुआ, भव्य शुभारंभ

वाराणसी की सदियों पुरानी रामनगर रामलीला का गणपति वंदन से भव्य आगाज हुआ, जिसमें भक्ति रस में डूबे श्रद्धालु शामिल हुए।

वाराणसी: मां गंगा जी के तट पर बसे ऐतिहासिक नगर रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला ने एक बार फिर भक्ति और अध्यात्म का अद्भुत संगम रच दिया है। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही यह रामलीला केवल एक धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और श्रद्धा का जीवंत प्रतीक है। द्वितीय दिवस पर जब श्रीरामलीला महोत्सव का शुभारंभ गणपति वंदन और पूजन से हुआ, तो पूरा परिसर 'राममय' हो उठा। भक्ति रस से सराबोर वातावरण में भक्तों की आंखें श्रद्धा से छलक पड़ीं।

मंच पर रामायणी दल द्वारा नारद वाणी में "गाइए गणपति जग वंदन, शंकर सुवन भवानी के नंदन" का सामूहिक गायन हुआ। इस पदावली के साथ ही मानो वातावरण में भक्ति की धारा बह निकली। श्रद्धालु झूम उठे और पूरा पंडाल "जय श्रीराम" के जयघोष से गूंजने लगा। मंगलाचरण के अंतिम चरण "मागत तुलसीदास कर जोरे, बसहि राम-सिय मानस मोरे" ने तो ऐसा भाव जगाया कि हर भक्त ने अनुभव किया कि स्वयं गोस्वामी तुलसीदासजी की आत्मा इस आयोजन में उपस्थित होकर भगवान से प्रार्थना कर रही हो कि "राम-सीता हर भक्त के हृदय में सदैव निवास करें"।

पूजन-अनुष्ठान में छोटे बच्चों से लेकर वृद्धजनों तक सभी ने एकाग्र भाव से भागीदारी निभाई। खास बात यह रही कि इस बार बच्चों में भी रामचरितमानस सुनने और गाने की अद्भुत उत्सुकता देखने को मिली। नन्हें बालकों का उत्साह मानो इस परंपरा के भविष्य को और भी उज्ज्वल बना रहा था। कई वृद्धजन तो भावविभोर होकर आंखों से अश्रुधारा बहाते दिखे।

परंपरा के अनुसार, इस वर्ष भी रामलीला अधिकारी ने जजमान के रूप में संकल्प पूजन कराया। वैदिक आचार्य पंडित श्री रामनारायण पांडेय और शांत नारायण पांडेय ने वैदिक विधि-विधान से गणेश पूजन, मंगलाचरण और संकल्प पूरा कराया। संकल्प का भाव था।"श्रीरामलीला के माध्यम से राजा, प्रजा, दर्शक और समस्त कार्यकर्ताओं का कल्याण हो।"

पूजन में मुख्य स्वरूप श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ महर्षि वशिष्ठ, महाराज दशरथ, व्यासजी और रामायणी दल सम्मिलित हुए। पूजन उपरांत बालकाण्ड के मंगलाचरण से लेकर सात दोहों तक का सामूहिक पाठ हुआ, जिसने वातावरण को और भी अधिक पवित्र कर दिया।
जब रामायण की चौपाइयों का पाठ हुआ, "श्रीगणपति गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत सदा सेवक सुमिरन, मंगल करहु सुजान॥"

तो ऐसा लगा मानो गंगा के तट पर स्वयं त्रेतायुग उतर आया हो। चौपाइयों और भजनों के स्वर गंगा की लहरियों में मिलकर भक्ति का अनूठा आलोक फैला रहे थे।

रामनगर की श्रीरामलीला का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है। इसे काशी नरेश ने परंपरा स्वरूप आरंभ कराया था और तभी से यह दुनिया की सबसे लंबी चलने वाली रामलीला के रूप में विख्यात है। लगभग एक माह से अधिक तक चलने वाली इस रामलीला में अभिनय मंचन नहीं, बल्कि शुद्ध पाठ और संवाद होते हैं। यहां आधुनिक रंगमंच की सजावट नहीं, बल्कि वास्तविक परंपरागत परिवेश का निर्माण किया जाता है।

विशेष बात यह है कि पूरी रामलीला रामनगर किले और आसपास के खुले मैदानों में संपन्न होती है। दर्शक और भक्तगण पात्रों के साथ-साथ विभिन्न स्थलों तक पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि जीवन मूल्यों और अध्यात्म का अद्वितीय शिक्षण भी है।

रामनगर की रामलीला केवल कथा का मंचन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना जगाने का माध्यम है। यहां रामचरितमानस की चौपाइयां, भजन और वैदिक मंत्र एक साथ गूंजते हैं। भक्तजन मानो स्वयं त्रेतायुग में लौटकर भगवान श्रीराम, सीता माता और लक्ष्मण के दर्शन करते हैं। यही कारण है कि यह परंपरा आज भी विश्वभर में अद्वितीय और अनुपम मानी जाती है।

FOLLOW WHATSAPP CHANNEL
Bluva Beverages Pvt. Ltd

LATEST NEWS