वाराणसी: रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला आज भी अपनी प्राचीन परंपरा के अनुरूप जीवंत है। मंगलवार को चौथे दिन का दृश्य ऐसा था कि मानो त्रेता युग स्वयं जीवित होकर रामलीला के मंच पर उतर आया हो। रामलीला स्थल पर हर ओर भक्ति और श्रद्धा का वातावरण था। भक्तगण हाथों में भजनमाला और दीप लिए हुए, जय श्री राम के उद्घोष से गूँज रहे थे। ढोल-नगाड़ों की थाप और भजन-कीर्तन के मधुर स्वर ने रामलीला को मंत्रमुग्ध कर देने वाला प्रभाव दिया।
लीला का यह अद्वितीय पहलू कि संवाद से पहले मंच और दर्शकगण में "चुप रहो सावधान" की गूंज सुनाई देती है, भक्तों के हृदय में एक विशेष ध्यान और श्रद्धा का भाव उत्पन्न करती है।
चौथे दिन की लीला का मुख्य आकर्षण था ताड़का वध। जैसे ही ताड़का घोर हुंकार भरते हुए श्रीराम की ओर दौड़ी, रामलीला स्थल पर रोमांच और श्रद्धा की लहर दौड़ गई।
"तड़का ताड़कासुर जब हुई विद्रोहिन।
राम जी बाण धरि चली अधम दलन॥"
श्रीराम ने अपने दिव्य बाण से ताड़का का संहार किया। हर प्रहार के साथ जयकारियों की गूँज पूरे मैदान में फैल गई। भक्तगण अपने हाथों में दीप और फूल लेकर नतमस्तक थे। मंच पर प्रभु श्रीराम का दृढ़ और दयालु स्वर उनकी दिव्यता को और अधिक स्पष्ट कर रहा था।
ताड़का का पुत्र मारीच सेना लेकर श्रीराम का सामना करने आया, लेकिन प्रभु के दिव्य बाण से वह समुद्र पार लंका में जा गिरा। इसके पश्चात श्रीराम ने सुबाहु और उसकी सेना का संहार किया। आकाश से देवगण हर्षित होकर जयकारियाँ करने लगे। इस पूरे दृश्य ने भक्तों के हृदय में असीम उत्साह और भक्ति का भाव भर दिया।
वन मार्ग में, मार्गदर्शक विश्वामित्र और गौतम ऋषि ने श्रीराम को अहिल्या शिला कथा सुनाई। प्रभु श्रीराम के चरण स्पर्श से अहिल्या प्रकट हो गईं। इसके पश्चात राम-लक्ष्मण का राजा जनक द्वारा भव्य स्वागत हुआ। जनकपुर में राम-लक्ष्मण और विश्वामित्र की आरती की गई और लीला को विश्राम दिया गया। रामनगर में जय श्री राम के उद्घोष और भजन माला से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे त्रेता युग का दिव्य समय पुनः जीवित हो उठा हो।
रामलीला के पाँचवें दिन भगवान राम भाई लक्ष्मण के साथ जनकपुर दर्शन, अष्टसखी संवाद और फुलवारी की लीला प्रस्तुत करेंगे। पूरे रामनगर में भक्तिमय वातावरण होगा, जय श्री राम के उद्घोष हर दिशा में गूँजेंगे।
"श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुण।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुण।"
काशी के रामनगर की यह लीला केवल धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि भक्तों के हृदय में रामभक्ति की अग्नि को प्रज्वलित करने वाली आध्यात्मिक अनुभूति है। मंच पर हर संवाद, हर श्लोक और हर दृश्य भक्तों के मन में त्रेता युग की पवित्रता का अहसास कराता है।
वाराणसी: रामनगर/रामलीला के चौथे दिन त्रेता युग का जीवंत दर्शन, ताड़का वध से भक्त हुए रोमांचित

वाराणसी के रामनगर में विश्व प्रसिद्ध रामलीला के चौथे दिन ताड़का वध का मंचन हुआ, जिसमें प्रभु श्रीराम ने राक्षसी का संहार कर त्रेता युग को जीवंत कर दिया।
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