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रामनगर रामलीला की अनोखी शुरुआत, पहले दिन नहीं दिखते श्रीराम के स्वरूप

रामनगर रामलीला की अनोखी शुरुआत, पहले दिन नहीं दिखते श्रीराम के स्वरूप

वाराणसी की विश्व प्रसिद्ध रामनगर रामलीला पहले दिन भगवान राम के स्वरूप के बिना, रावण जन्म और अत्याचारों से होती है शुरू।

वाराणसी: भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में रामनगर की रामलीला का विशेष स्थान है। यह रामलीला अपनी भव्यता और अनोखी परंपराओं के कारण विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इसे देखने के लिए वाराणसी के रामनगर पहुंचते हैं। पूरी रामलीला भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित होती है, जिसमें उनके जन्म से लेकर अयोध्या के राजा बनने तक की कथा प्रस्तुत की जाती है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि लीला का पहला दिन बाकी दिनों से अलग होता है।

परंपरा के अनुसार रामलीला के पहले दिन मंच पर प्रभु श्रीराम का स्वरूप नहीं होता। इस दिन कथा रावण के जन्म और उसके बढ़ते अत्याचारों से शुरू होती है। इसमें विस्तार से दिखाया जाता है कि किस प्रकार रावण के आतंक से देवता भयभीत होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं कि वे पृथ्वी पर अवतार लेकर उनका उद्धार करें। यही प्रसंग आगे पूरी रामकथा की नींव रखता है और दर्शकों को यह संदेश देता है कि जल्द ही भगवान विष्णु राम के रूप में जन्म लेंगे।

रामनगर की इस अनूठी परंपरा के तहत पहले दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का श्रृंगार किया जाता है। प्रशिक्षित कलाकारों में से दो को भगवान विष्णु और दो को माता लक्ष्मी का स्वरूप दिया जाता है। इनमें से एक जोड़ी बैकुंठ और दूसरी क्षीर सागर में निवास करती दिखाई जाती है। इस दृश्य को देखकर भक्तों में भक्ति और श्रद्धा का भाव गहराता है और कथा की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है।

रामलीला के दूसरे दिन से मंच पर श्रीराम का स्वरूप दिखाई देने लगता है और फिर कथा उनके जीवन के इर्द गिर्द आगे बढ़ती है। जन्म, वनवास, रावण वध और अंत में राजगद्दी तक की पूरी गाथा इस रामलीला के माध्यम से जीवंत होती है। खास बात यह भी है कि रामनगर की यह रामलीला बिना माइक और कृत्रिम रोशनी के होती है। कलाकारों की वाणी और पारंपरिक शैली ही संवाद और प्रस्तुति का माध्यम बनती है। यही कारण है कि यह लीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक जीवंत परंपरा मानी जाती है जो सदियों से आज तक वैसी ही चल रही है।

रामनगर की रामलीला न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत की झलक भी पेश करती है। पहला दिन जहां कथा की नींव रखता है वहीं अगले दिनों में कथा के उतार चढ़ाव और चरमोत्कर्ष दर्शकों को बांधे रखते हैं। यही कारण है कि यह रामलीला हर साल दूर दूर से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रहती है।

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