वाराणसी/रामनगर: धर्म और मोक्ष की नगरी काशी के आध्यात्मिक जगत में आज एक अपूरणीय शून्य व्याप्त हो गया है। प्रभु श्री राम और हनुमान जी के अनन्य उपासक, त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति, 99 वर्षीय परम श्रद्धेय संत श्री विष्णुदास जी महाराज ने अपनी नश्वर काया का त्याग कर प्रभु के श्रीचरणों में विश्राम पा लिया है। उनका जाना केवल एक संत का जाना नहीं, बल्कि एक सदी पुरानी भक्ति परंपरा और सात्विक जीवन शैली के एक अध्याय का पूर्ण होना है।
गायघाट के मूल निवासी रहे महाराज जी का संपूर्ण जीवन वैराग्य और ईश्वरीय प्रेम की एक ऐसी गाथा रहा, जिसे जिसने भी देखा, वह नतमस्तक हो गया। विक्की गुप्ता जी के निजी आश्रम में जब इस दिव्य आत्मा ने अंतिम सांस ली, तो वहां उपस्थित हर व्यक्ति का हृदय विह्वल हो उठा और वातावरण में एक अजीब सी सन्नाटे भरी गूंज छा गई, मानो समय भी इस महाप्रयाण के सम्मान में थम गया हो।
संत विष्णुदास जी का आध्यात्मिक सफर किसी अलौकिक यात्रा से कम नहीं था। अपने जीवन का एक लंबा और महत्वपूर्ण कालखंड उन्होंने काशी के ऐतिहासिक पंचगंगा घाट, जिसे बिंदुमाधव घाट के नाम से भी जाना जाता है, पर व्यतीत किया। माँ गंगा की लहरों के सानिध्य में, घाट की सीढ़ियों पर बैठकर उन्होंने जो कठोर तपस्या की, वह आज की पीढ़ी के लिए एक अविस्मरणीय उदाहरण है। बिंदुमाधव घाट के बाद, उनकी साधना का पड़ाव जानकी बाग और तत्पश्चात रामनगर का मधुबन बना, जहाँ वे निरंतर ईश्वरीय चिंतन में लीन रहे। उनका जीवन हनुमान जी और प्रभु श्री राम की भक्ति का जीवंत प्रमाण था। उनके मुखमंडल पर हमेशा राम नाम का तेज और आंखों में करुणा का सागर लहराता था। वे केवल एक शरीर नहीं, बल्कि चलती-फिरती भक्ति की मशाल थे, जो अब बुझकर अनंत में विलीन हो गई है।
उनकी अंतिम यात्रा का दृश्य इतना मार्मिक और भव्य था कि पत्थर दिल भी पिघल जाए। उनके निज आवास से उनकी पार्थिव देह को एक सुसज्जित वाहन द्वारा गंगा तट पर ले जाया गया, जहां से नाव द्वारा माँ गंगा के रास्ते उस स्थान पर ले जाया गया, जो उनकी तपोभूमि रही थी, बिंदुमाधव घाट। जैसे ही उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई, रामनगर की गलियां और गंगा का तट 'जय श्री राम' के जयकारों से गूंज उठा। श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों ने अपने इस प्रिय संत को अंतिम विदाई देते हुए अश्रुपूरित नेत्रों से उन पर पुष्पों की वर्षा की। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो धरती अपने इस लाडले संत को विदा करते हुए रो रही हो और आकाश फूलों के रूप में अपना आशीर्वाद बरसा रहा हो। गंगा की लहरों पर नाव में सवार होकर जब वे अपने अंतिम गंतव्य की ओर बढ़े, तो वह दृश्य एक महाकाव्य के समापन जैसा प्रतीत हो रहा था।
बिंदुमाधव घाट के सामने, पतित पावनी माँ गंगा की गोद में उन्हें विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ जलसमाधि दी गई। 99 वर्षों का एक लंबा, पवित्र और त्यागमय जीवन आज गंगा जल में एकाकार हो गया। संत विष्णुदास जी महाराज भले ही आज भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी तपस्या, उनकी सरलता और उनकी अटूट रामभक्ति रामनगर और काशी के कण-कण में सदैव जीवित रहेगी। ईश्वर उनकी पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में सर्वोच्च स्थान प्रदान करें। ॐ शांति।
रामभक्त संत विष्णुदास जी महाराज गोलोकवासी, आंसुओं और पुष्प वर्षा के बीच ली जलसमाधि

धर्मनगरी काशी के अनन्य रामभक्त संत श्री विष्णुदास जी महाराज 99 वर्ष की आयु में गोलोकवासी हुए, आध्यात्मिक जगत में शोक।
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