News Report
TRUTH BEHIND THE NEWS

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सनातन धर्म के भविष्य पर जताई चिंता, आत्मचिंतन पर जोर

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सनातन धर्म के भविष्य पर जताई चिंता, आत्मचिंतन पर जोर

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सनातन धर्म के सांस्कृतिक व आध्यात्मिक क्षरण पर गहरी चिंता जताई, आत्मचिंतन पर बल दिया है।

सनातन धर्म की वर्तमान स्थिति और इसके भविष्य को लेकर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एक वीडियो संदेश जारी करते हुए चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्षरण कोई नई बात नहीं है, बल्कि पिछले कई हजार वर्षों से यह प्रक्रिया धीरे धीरे जारी रही है और आज यह अपने गंभीर रूप में दिखाई दे रही है। उनके अनुसार समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि आत्मचिंतन और आत्मावलोकन की परंपरा को भुला दिया गया है। लोग अपनी कमियों को देखने के बजाय दूसरों की ओर देखने की आदत में बंध गए हैं, जिसके कारण संस्कृति, सभ्यता और धार्मिक धरोहर का संरक्षण कमजोर पड़ता चला गया है।

शंकराचार्य ने अपने संदेश में कई ऐसे उदाहरण दिए जिनसे यह स्पष्ट होता है कि सनातन परंपरा से जुड़े महत्वपूर्ण स्थान आज भारत से दूर होते गए हैं और उनके लिए निर्भरता बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि कैलाश मानसरोवर, जिसे सनातन परंपरा में अत्यंत पवित्र माना जाता है, आज भारत के बाहर है और वहां जाने के लिए हमें दूसरे देश की अनुमति लेनी पड़ती है। इसी तरह गांधार क्षेत्र, जो कभी संस्कृति और संबंधों का अभिन्न हिस्सा था, आज पूरी तरह पराया हो चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि कई शक्ति पीठ और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल ऐसी सीमाओं में आ गए हैं जहां भारतीय साधारण रूप से भी अपने देवी देवताओं की पूजा नहीं कर सकते, जबकि यह स्थान कभी हमारी परंपराओं और आस्था के केंद्र रहे हैं।

अपने संदेश में उन्होंने जातिगत विभाजन और आंतरिक संघर्ष को सनातन धर्म के सामने सबसे बड़ी समस्या बताया। शंकराचार्य ने कहा कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का विभाजन समाज को पहले ही बांट चुका था, लेकिन अब इस विभाजन ने और जटिल रूप ले लिया है। आज एक ही जाति के भीतर उपजातियों और गुटों के बीच भी टकराव बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि लोग एक दूसरे को यह बताने में लगे हैं कि कौन किस वर्ग का है या किस उपगुट से आता है, जबकि समाज को आगे बढ़ाने के लिए इस मनोवैज्ञानिक दूरी को मिटाना जरूरी है। उनके अनुसार इन छोटे छोटे मतभेदों ने समाज की एकता और शक्ति को कमजोर किया है और यह आंतरिक विभाजन बाहरी चुनौतियों से अधिक खतरनाक हो चुका है।

शंकराचार्य ने यह भी कहा कि समस्याएँ जिन्हें बाहरी शत्रुओं से मिलकर हल किया जाना चाहिए था, वे अब घर के भीतर पैदा हो रही हैं। आपसी संघर्ष, अहंकार और संकीर्ण सोच समाज को भीतर से कमजोर कर रही है और इसका सीधा असर सनातन धर्म की प्रतिष्ठा और स्थिरता पर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक समाज आत्मचिंतन, संवाद और अपनी गलतियों पर नज़र डालने की परंपरा को पुनः स्थापित नहीं करेगा, तब तक सांस्कृतिक मूल्यों को सुरक्षित रखना कठिन होगा। उनके अनुसार देश को आज पहले से अधिक एकता की जरूरत है ताकि परंपरा और धर्म की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।

FOLLOW WHATSAPP CHANNEL
News Report Youtube Channel

LATEST NEWS