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वाराणसी में छठ महापर्व की धूम, श्रद्धालुओं ने लिया 36 घंटे व्रत का संकल्प

वाराणसी में छठ महापर्व की धूम, श्रद्धालुओं ने लिया 36 घंटे व्रत का संकल्प

वाराणसी में छठ महापर्व की धूम शुरू, व्रती महिलाओं ने खरना कर गुड़ की खीर का भोग लगाया और 36 घंटे निर्जला व्रत का संकल्प लिया।

वाराणसी: पूर्वांचल की राजधानी वाराणसी में छठ महापर्व की रौनक अपने उत्कर्ष पर पहुँच गई है। रविवार को शहर के व्रती श्रद्धालुओं ने खरना का विधिपूर्वक आयोजन किया। इस अवसर पर महिलाओं ने छठ मैया को गुड़ की खीर का भोग अर्पित कर 36 घंटे व्रत का संकल्प लिया। वाराणसी के घाटों पर इस दौरान श्रद्धालुओं की हलचल और भक्तिभाव का अद्भुत दृश्य देखने को मिला।

रविवार की शाम को मां गंगा नदी के किनारे स्थित घाट रोशनी और दीपों से जगमगाए। दशाश्वमेध घाट, नमो घाट, अस्सी घाट, भैरव घाट, हरिश्चंद्र घाट, सिंधिया घाट और राजघाट घाट पर रंग-बिरंगी सजावट और अलंकृत वेदियों ने छठ महापर्व को और भी भव्य बना दिया। घाटों पर अल्पना और मधुबनी चित्रकारी का अनोखा नजारा देखने को मिला। श्रद्धालुओं ने कोसी भरकर मन्नतें मांगी और कई लोगों ने सुशोभिताओं पर अपने नाम भी अंकित किए।

वाराणसी के नगर निगम और स्थानीय प्रशासन ने घाटों की साफ-सफाई, सुरक्षा व्यवस्था और प्रकाश-सज्जा में विशेष ध्यान दिया। इसके साथ ही पुलिस और आपातकालीन सेवाओं की टीम भी घाटों पर चौकस नजर आई।

रामनगर संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, रामनगर क्षेत्र में भी छठ महापर्व की तैयारियां पूरी तरह मुकम्मल हैं। बलुआ घाट, सिपहिया घाट, कोदोपुर घाट और छोटे-छोटे गांवों में स्थित घाटों पर श्रद्धालुओं ने अलंकृत वेदियों और दीपों की सजावट की। स्थानीय प्रशासन ने घाटों की सुरक्षा, साफ-सफाई और प्रकाश व्यवस्था को सुनिश्चित किया है। बलुआ घाट और सिपहिया घाट पर विशेष रूप से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जलस्रोतों और बैठने की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित किया गया।

सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए शहर में लाखों से अधिक श्रद्धालु जुटेंगे। मंगलवार सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण होगा। वाराणसी और रामनगर दोनों ही क्षेत्रों में घाटों की अलौकिक सजावट और श्रद्धालुओं की भक्तिमय उपस्थिति महापर्व को अविस्मरणीय बना रही है।

वाराणसी के लोग और पर्यटक इस अद्भुत और उल्लासपूर्ण दृश्य का लुत्फ उठाने के लिए शहर के घाटों का रुख कर रहे हैं। घाटों पर अल्पना और मधुबनी चित्रकारी, रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट ने वाराणसी की सांस्कृतिक धरोहर को और भी जीवंत बना दिया है।

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