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काशी में दिवाली की रात तंत्र साधना तांत्रिक और अघोरियों ने सिद्ध की अपनी शक्ति

काशी में दिवाली की रात तंत्र साधना तांत्रिक और अघोरियों ने सिद्ध की अपनी शक्ति

वाराणसी में दिवाली की काली रात हरिश्चंद्र घाट पर तांत्रिकों ने लक्ष्मी प्राप्ति व सुख-समृद्धि के लिए विशेष तंत्र साधना की, जिसमें प्रतीकात्मक बलियों का प्रयोग हुआ।

वाराणसी: 20 अक्टूबर दिवाली का पर्व सुख-समृद्धि और खुशियों का प्रतीक माना जाता है लेकिन काशी के श्मशान घाट पर अमावस्या की काली रात तांत्रिक और अघोरियों ने अपनी तंत्र साधना की। हरिश्चंद्र घाट पर रात 12.30 बजे से भोर तक चले इस पूजन में तांत्रिकों ने भैरव पूजन, काली माता पूजा, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए मंत्र, यंत्र और प्रतीकात्मक बलियों का प्रयोग किया।

स्थानीय अधिकारियों और तंत्र शास्त्र विशेषज्ञों के अनुसार यह साधना विशेष रूप से कार्तिक मास की अमावस्या की रात को की जाती है और इसे तंत्र शास्त्र में शक्तिशाली माना जाता है। पूजा में कद्दू और लौकी जैसी वनस्पतियों का उपयोग किया गया। विशेषज्ञों ने बताया कि शास्त्रीय तंत्र प्रयोग पूरी तरह सुरक्षित और प्रतीकात्मक होते हैं। जीवों की बलि देना शास्त्रीय दृष्टि से गलत है और कानूनी तथा नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।

तंत्र परंपरा के जानकारों के अनुसार दीपावली की रात किए जाने वाले तंत्र क्रियाओं का उद्देश्य धन, व्यापार, वैभव और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना होता है। सामाजिक भ्रम और सोशल मीडिया पर फैल रहे गलत तथ्यों के बावजूद वास्तविक साधना अहिंसात्मक और प्राकृतिक नियमों के अनुरूप होती है। विशेषज्ञों ने गृहस्थों से अपील की कि वे इस साधना में भाग न लें और सुरक्षित दूरी बनाए रखें।

काशी के शास्त्रीय और तांत्रिक केंद्रों में यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। इसी तरह चित्रकूट, प्रयागराज, देवरिया, कुशीनगर और गाजीपुर में भी तंत्र साधना की जाती है। ज्योतिष और तंत्र विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि सच्ची शुभता और समृद्धि पूजा, ध्यान, दान और सही कर्मों से ही प्राप्त होती है, बलि या अन्य हिंसात्मक क्रियाओं से नहीं।

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