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वाराणसी: लंका चौराहे पर पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी समेत 35 दुकानें जमींदोज

वाराणसी: लंका चौराहे पर पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी समेत 35 दुकानें जमींदोज

वाराणसी में लहरतारा-विजया मॉल फोरलेन सड़क विस्तार परियोजना के तहत लंका चौराहे की दशकों पुरानी पहचान, पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी, को PWD ने बुलडोजर चलाकर जमींदोज कर दिया।

वाराणसी: काशी की वो गलियाँ, जहाँ हर मोड़ पर इतिहास की खुशबू और विरासत की गरिमा बसी होती है, मंगलवार की रात एक चुप्पी के साथ कुछ ऐसी टूट गईं जैसे किसी बूढ़े बरगद को उखाड़ दिया गया हो। लंका चौराहे पर दशकों से खड़े दो नाम पहलवान लस्सी और चाची की कचौड़ी अब केवल बीते वक्त की बात बनकर रह गए हैं। लोक निर्माण विभाग (PWD) ने लहरतारा से विजया मॉल (भेलूपुर) तक 9.512 किलोमीटर लंबे फोरलेन सड़क विस्तार परियोजना के तहत बुलडोज़र चलाकर इन ऐतिहासिक दुकानों को जमींदोज कर दिया।

यह महज दो दुकानों का हटना नहीं था। यह उस विरासत का बिखर जाना था जो पीढ़ियों से इस शहर की आत्मा का हिस्सा थी। पहलवान लस्सी की मिठास और चाची की कचौड़ी की खुशबू उन लाखों लोगों की यादों का हिस्सा रही है, जो हर साल देश-दुनिया से काशी आते थे। हर सुबह जहां चाची की कचौड़ी से दिन की शुरुआत होती थी, वहीं दोपहर में पहलवान की लस्सी दिन की थकान को मीठे सुकून में बदल देती थी।

इन दुकानों को हटाने की प्रक्रिया पूरी तरह से विधिक और नियोजित थी। PWD द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, इस चौड़ीकरण योजना के तहत 35 से अधिक दुकानों को पहले ही चिन्हित किया गया था। तकरीबन एक माह पूर्व सभी दुकानदारों को नोटिस देकर दुकानें खाली करने को कहा गया था। मंगलवार रात जब जेसीबी ने दुकानों की दीवारों को तोड़ना शुरू किया, उस वक्त शहर की धड़कनों में एक अजीब सी बेचैनी थी। दुकानदारों की आँखें नम थीं, और स्थायी ग्राहकों के मन में एक खालीपन।

रविदास गेट के सामने स्थित ये प्रतिष्ठान आम दुकानों की तरह नहीं थे। ये वे मुकाम थे जहाँ से संस्कृति, स्वाद और स्मृति तीनों साथ चलती थीं। पहलवान लस्सी के मालिक भावुक होकर कहते हैं, “हमने अपने बचपन से आज तक इस दुकान को सींचा है, कभी नहीं सोचा था कि इसे यूं उजड़ते देखना पड़ेगा। अब इसे कहीं और बसाने की कोशिश करेंगे, लेकिन जो पहचान यहाँ मिली, वो शायद कहीं और न मिले।” चाची की कचौड़ी वाली दुकान की मालकिन ने सिसकते हुए कहा, “हमने जमुई से आकर यह दुकान खड़ी की थी। 60 साल से सुबह पांच बजे तवे पर कचौड़ी चढ़ती थी, आज पहली बार बिना तवा जले नींद खुली है।”

इस चौड़ीकरण परियोजना पर कुल 241.80 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। उद्देश्य है वाराणसी जैसे घनी आबादी वाले शहर में ट्रैफिक जाम की समस्या को दूर करना और मुख्य मार्गों को सुगम बनाना। लहरतारा, भिखारीपुर, लंका और भेलूपुर जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लाखों निवासियों को इससे लाभ मिलने की उम्मीद है।

PWD के अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि जिन लोगों की संपत्तियां इस परियोजना की सीमा में आती हैं, उन्हें उचित मुआवजा दिया जाएगा। इसके लिए एक अलग सूची तैयार की जा रही है और प्रक्रिया शीघ्र पूरी की जाएगी।

लेकिन सवाल यह नहीं कि मुआवजा कितना मिलेगा, सवाल यह है कि क्या काशी की गलियों में अब वो स्वाद दोबारा लौट पाएगा? क्या नई जगह पर बसी दुकानें वैसी ही आत्मीयता पैदा कर पाएंगी? शायद नहीं। क्योंकि काशी की आत्मा सिर्फ इमारतों में नहीं बसती, वह उन कहानियों में होती है जो इन दुकानों की दीवारों पर चिपकी होती हैं।

आज वाराणसी के कुछ हिस्से चौड़े जरूर हो रहे हैं, लेकिन शहर के दिल में एक कोना खाली हो गया है। जहाँ कभी पहलवान की लस्सी की मिठास और चाची की कचौड़ी की खुशबू बसी रहती थी। अब वहाँ सिर्फ यादें हैं, और कुछ ढहे हुए ईंट-पत्थर, जो अब इतिहास बन कर रह जाएंगे।

Published By : SANDEEP KR SRIVASTAVA Updated : Tue, 17 Jun 2025 11:51 PM (IST)
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Tags: varanasi news kashi heritage road widening project

Category: uttar pradesh local news

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