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काशी में मां काली की प्रतिमा का भव्य विसर्जन, संकरी गलियों से निकली श्रद्धा और अनुशासन की मिसाल

काशी में मां काली की प्रतिमा का भव्य विसर्जन, संकरी गलियों से निकली श्रद्धा और अनुशासन की मिसाल

वाराणसी के देवनाथपुरा में नवसंघ क्लब की मां काली प्रतिमा का विसर्जन कड़ी सुरक्षा के बीच श्रद्धापूर्वक मंदाकिनी कुंड में संपन्न हुआ।

वाराणसी के देवनाथपुरा स्थित नवसंघ क्लब की मां काली की प्रतिमा का विसर्जन सोमवार को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच संपन्न हुआ। प्रतिमा को पारंपरिक शोभायात्रा के रूप में देवनाथपुरा से मैदागिन कंपनी बाग स्थित मंदाकिनी कुंड तक ले जाया गया। इस दौरान शहर की पांच थानों की पुलिस फोर्स सुरक्षा व्यवस्था में तैनात रही। संकरी गलियों से गुजरती पांच फीट चौड़ी प्रतिमा को मार्ग पार करने में करीब दो घंटे का समय लगा, लेकिन श्रद्धालुओं ने पूरी आस्था और अनुशासन के साथ इस परंपरा को निभाया।

विसर्जन यात्रा से पहले नवसंघ क्लब के पंडाल में मां काली की प्रतिमा का विधिवत पूजन और आरती की गई। बंग समुदाय की महिलाओं ने पारंपरिक सिन्दूर खेला की रस्म निभाई, जिसके बाद मां काली की आराधना के जयघोष के बीच शोभायात्रा प्रारंभ हुई। गलियों में आगे बढ़ते हुए भक्तों ने मां काली के दर्शन किए और उन पर फूलों की वर्षा की। पांडेय हवेली मुख्य मार्ग पर जैसे ही प्रतिमा पहुंची, पूरा क्षेत्र भक्तिमय माहौल से गूंज उठा।

सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए गोदौलिया चौराहे तक पुलिस फोर्स मुस्तैद रही। संवेदनशील इलाकों जैसे मदनपुरा और जंगमबाड़ी में विशेष निगरानी रखी गई। ढोल-नगाड़ों और ढाक की थापों पर बंगाली श्रद्धालु नाचते हुए आगे बढ़ते गए। शोभायात्रा में हर वर्ग के लोगों ने भाग लिया। प्रतिमा जिस वाहन पर रखी थी, उस पर विधायक सौरभ श्रीवास्तव भी मौजूद रहे। उन्होंने रास्ते में श्रद्धालुओं को शांतिपूर्वक आगे बढ़ने का संदेश दिया और व्यवस्था को नियंत्रित रखने में सहयोग किया।

विसर्जन यात्रा गोदौलिया चौराहे पर पहुंची तो प्रतिमा वाले वाहन ने पारंपरिक रूप से सात चक्कर लगाए। इसके बाद जुलूस बांसफाटक और बुलानाला मार्ग होते हुए मैदागिन कंपनी बाग पहुंचा। वहां मां काली की अंतिम आरती के बाद प्रतिमा का विधिवत विसर्जन किया गया।

पूरे आयोजन के दौरान भक्तिमय वातावरण बना रहा। श्रद्धालुओं ने मां काली के जयघोष के साथ विसर्जन यात्रा का समापन किया। स्थानीय प्रशासन और आयोजकों के सहयोग से यह धार्मिक परंपरा शांतिपूर्ण और गरिमामय तरीके से पूरी हुई, जो काशी की सांस्कृतिक एकता और अनुशासन का प्रतीक बनी

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