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वाराणसी: नाटी इमली में ऐतिहासिक भरत मिलाप, भारी बारिश में भी उमड़ा जनसैलाब

वाराणसी: नाटी इमली में ऐतिहासिक भरत मिलाप, भारी बारिश में भी उमड़ा जनसैलाब

वाराणसी के नाटी इमली में भारी बारिश के बावजूद 25 हजार से अधिक श्रद्धालु ऐतिहासिक भरत मिलाप के साक्षी बने, जय श्रीराम के जयकारों से गूंजा मैदान।

वाराणसी: धार्मिक नगरी काशी अपनी परंपराओं, आस्थाओं और अलौकिक उत्सवों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इन्हीं में से एक अद्भुत और चमत्कारिक आयोजन है नाटी इमली का भरत मिलाप, जिसे देखने और अनुभव करने के लिए श्रद्धालुओं का महासागर उमड़ पड़ता है। इस वर्ष भी घनघोर बारिश के बावजूद आस्था का जनसैलाब उमड़ा और करीब 25 हजार से अधिक श्रद्धालु मैदान में डटे रहे। काशी की यह परंपरा उस समय जीवंत हो उठी जब राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का ऐतिहासिक मिलन हुआ और मैदान "जय श्रीराम" के जयकारों से गूंज उठा।

बारिश में भी भीगते रहे श्रद्धालु, लेकिन डटे रहे मैदान में
शुक्रवार की रात जब रघुकुल का रथ मैदान में प्रवेश करता है तो श्रद्धा और उत्साह की लहर पूरे वातावरण में फैल जाती है। इस बार का नजारा विशेष इसलिए रहा क्योंकि लगातार हो रही बारिश ने भी लोगों की आस्था को नहीं डिगाया। श्रद्धालु छाता लेकर, बरसते पानी में भी भीगते हुए पूरे समय लीला का आनंद लेते रहे। जैसे ही भरत और शत्रुघ्न ने राम-लक्ष्मण के स्वागत में भूमि पर लेटकर नतमस्तक होकर अपनी भक्ति प्रदर्शित की, वैसे ही वातावरण अद्भुत भावुकता से भर उठा। राम और लक्ष्मण रथ से उतरकर दौड़े और दोनों भाइयों को उठाकर गले से लगा लिया। चारों भाइयों के इस पुनर्मिलन के बाद हर आंख नम हो गई और जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा।

राजपरिवार की शाही परंपरा और दिव्य आशीर्वाद
काशी के महाराजा आनंत विभूति नारायण सिंह ने भी इस अवसर पर अपनी शाही परंपरा को निभाते हुए भगवान श्रीराम को चांदी की गिन्नी अर्पित कर आशीर्वाद लिया। इस आयोजन को देखने आए विद्वान कृष्णकांत शास्त्री ने कहा, “इस वर्ष की लीला बारिश के बीच और भी अद्भुत हो गई। ऐसा दिव्य दृश्य पहली बार देखने को मिला।” यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बारिश की हर बूंद मानो इस दिव्य मिलन को और पवित्र बना रही थी।

480 वर्ष पुरानी परंपरा और तुलसीदास की प्रेरणा
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि यह भरत मिलाप लीला मात्र उत्सव नहीं बल्कि आस्था की ऐसी परंपरा है, जो तुलसीदास की प्रेरणा से जन्मी। करीब 481 वर्ष पहले तुलसीदास जी के समकालीन मेघा भगत ने इस आयोजन की नींव रखी थी। जब तुलसीदास ने अपना शरीर त्याग दिया तो मेघा भगत अत्यंत व्यथित हुए। मान्यता है कि तुलसीदास ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर इस लीला की शुरुआत का संकेत दिया। तभी से नाटी इमली का यह भरत मिलाप निरंतर होता आ रहा है और अब विश्वभर में प्रसिद्ध हो चुका है।

कहा जाता है कि तुलसीदास ने रामचरितमानस काशी के घाटों पर रचते समय ही रामलीला की परंपरा को जन-जन तक पहुँचाने का विचार किया था। मेघा भगत ने उसी परंपरा को स्थायी रूप दिया और भरत मिलाप को लोकआस्था का उत्सव बना दिया। यहां यह भी मान्यता है कि मेघा भगत को इसी चबूतरे पर स्वयं भगवान राम ने दर्शन दिए थे।

यादव बंधुओं का पुष्पक विमान और आस्था का रंग
इस आयोजन की एक बड़ी विशेषता यादव बंधुओं का योगदान है। आंखों में सुरमा, पारंपरिक धोती-बनियान और सिर पर पगड़ी धारण किए ये श्रद्धालु जब रामलला का 5 टन वजनी पुष्पक विमान लेकर मैदान में प्रवेश करते हैं तो दृश्य अविस्मरणीय हो उठता है। पिछले 480 वर्षों से यह दायित्व यादव समाज निभाता आ रहा है। रथ खींचते हुए जब वे "जय सिया राम" के उद्घोष करते हैं तो पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

इस बार सुरक्षा व्यवस्था भी बेहद सख्त रही। पूरे लीला क्षेत्र में वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया। साथ ही तीन ड्रोन से क्षेत्र की निगरानी की गई। सुरक्षा के साथ श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए थे।

काशी नरेश की शाही उपस्थिति और परंपरा का निर्वहन
नाटी इमली के भरत मिलाप में काशी नरेश का शाही अंदाज हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है। इस परंपरा की शुरुआत 1796 में महाराज उदित नारायण सिंह ने की थी। तब से लेकर अब तक काशी राज परिवार की पांच पीढ़ियां इस धार्मिक उत्सव की साक्षी बनीं और इसकी गरिमा को बढ़ाती रही हैं। आज भी जब काशी नरेश अपने शाही स्वरूप में लीला स्थल पर पहुंचते हैं तो श्रद्धालु उन्हें देखकर भाव-विभोर हो उठते हैं।

विश्व भर में गूंज रही काशी की परंपरा
नाटी इमली का भरत मिलाप अब सिर्फ वाराणसी की सीमाओं तक सीमित नहीं रहा। इस आयोजन की ख्याति देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक फैल चुकी है। हर वर्ष अनेक विदेशी पर्यटक और श्रद्धालु विशेष रूप से काशी पहुंचते हैं ताकि इस अद्वितीय आयोजन का साक्षात्कार कर सकें। यह आयोजन भारतीय संस्कृति और भक्ति परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जो काशी की आध्यात्मिकता को विश्व मंच पर प्रतिष्ठित करता है।

घनघोर बारिश, भीगे हुए कपड़े, गीला मैदान, इन सबके बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था डिगी नहीं। जब चारों भाइयों का दिव्य मिलन हुआ तो हर हृदय भावविभोर हो उठा। नाटी इमली का भरत मिलाप केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, भाईचारे और भक्ति की ऐसी अद्भुत मिसाल है, जो युगों-युगों तक लोगों के दिलों में जीवित रहेगी। काशी की इस परंपरा ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि आस्था के आगे प्रकृति की हर चुनौती छोटी पड़ जाती है।

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