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सजीव हुई त्रेतायुग की छवि, रामनगर रामलीला में श्रीराम लक्ष्मण का जनकपुर में हुआ, आगमन

सजीव हुई त्रेतायुग की छवि, रामनगर रामलीला में श्रीराम लक्ष्मण का जनकपुर में हुआ, आगमन

वाराणसी की विश्वप्रसिद्ध रामनगर रामलीला में श्रीराम और लक्ष्मण के जनकपुर आगमन से त्रेतायुग की झाँकी सजीव हो उठी।

वाराणसी: रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला में पाँचवें दिन का दृश्य ऐसा था मानो त्रेतायुग की पावन छवि वर्तमान में सजीव हो उठी हो। श्रीराम और लक्ष्मण के जनकपुर आगमन के साथ ही पूरा वातावरण रामचरितमानस की पंक्तियों से गूंजता प्रतीत हुआ। "सिय वरन रूप मनि मंजु मनोरम। तनु द्युति सुधा रसमय अमर॥"

पांचवे दिन की शुरुआत जनकपुर दर्शन से हुई। मुनि विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्रीराम और लक्ष्मण जब नगर में प्रवेश करते हैं, तो हर कोई उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ता है। नगरवासी अपने कार्य-धंधे छोड़ कर उनके स्वरूप का दर्शन करने पहुँचते हैं।"सांवला सलोना रूप सुहावन। जनकपुर बसहिं मन भावन॥" उनके तेज और सौंदर्य को देखकर जनमानस स्तब्ध रह गया। मानो कामदेव का भी तेज श्रीराम के सम्मुख फीका पड़ गया हो।

इसके बाद मंचित हुआ अष्टसखियों का मनोरम संवाद। एक सखी कहती है, "कोटि रति रूप मनोहर मूरति। देखत मोह करहिं सब जूरति॥"

दूसरी कहती है,"हंस शिशु सम सुन्दर जोरी। जानकीहि यहि योग्य न होरी॥"

फिर एक सखी शंका प्रकट करती है,"महाराज का शिवधनुष बहुत भारी और कठोर है, यह कोमल राजकुमार कैसे इसे उठा पाएंगे?"
तब दूसरी सखी उस संशय का समाधान करती है
"अहिल्या उरिन कृत क्रिपाला। सो धनुष तजि जाइ न बिहाला॥"
सखियाँ पुष्पवर्षा कर दोनों भाइयों का स्वागत करती हैं।

लीला आगे बढ़ी और श्रीराम-लक्ष्मण प्रातःकाल फुलवारी की ओर गए। तभी जानकी गिरिजा पूजन हेतु वहाँ पहुँचीं। सीता जी ने माता पार्वती की स्तुति कर अपने लिए योग्य वर की कामना की, "वर चाहउँ शील रूप गुन अखिल लोकपति होइ।"
माता पार्वती की स्तुति के उपरांत आकाशवाणी होती है, "सुनु सिय सत्य कहउँ भवानी। राम तुम्हहि पावनिहि सयानी॥"

इस दौरान सखियाँ सीता से राजकुमारों का रूप और तेज बताती हैं। सीता पहली बार राम के दर्शन करती हैं और आश्चर्य से भर जाती हैं। इधर श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं, "सुनहु सखि सुकुमारी के गहना। बाजत मानो काम विजय भेना॥"

लीला के अंतिम प्रसंग में श्रीराम मुनि विश्वामित्र से चकई-चकवा और प्रभात का रहस्य पूछते हैं। उसके बाद मंगलगान और आरती के साथ पाँचवें दिन की लीला पूर्ण होती है।

रामनगर की इस अद्भुत, पौराणिक और पतित-पावन परंपरा में हर प्रसंग ऐसा लगता है जैसे की मानो की फिर से त्रेता युग जीवंत हो उठा हों। श्रद्धालुओं ने इस दिव्य लीला का रसपान कर अपने हृदय को भक्ति और भाव से परिपूर्ण किया।

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