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वाराणसी में विशालाक्षी शक्तिपीठ का कुंभाभिषेक शुक्रवार से, 12 वर्ष बाद हो रहा आयोजन

वाराणसी में विशालाक्षी शक्तिपीठ का कुंभाभिषेक शुक्रवार से, 12 वर्ष बाद हो रहा आयोजन

वाराणसी के विशालाक्षी शक्तिपीठ में 12 वर्ष बाद कुंभाभिषेक शुक्रवार से होगा शुरू, तमिलनाडु से वैदिक विद्वान पहुंचे

वाराणसी के प्रसिद्ध विशालाक्षी शक्तिपीठ में 12 वर्ष बाद होने वाला कुंभाभिषेक शुक्रवार से शुरू होगा। यह आयोजन आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसके लिए तमिलनाडु से वैदिक विद्वानों तथा कर्मकांडी ब्राह्मणों का विशेष दल गुरुवार को वाराणसी पहुंचेगा। मंदिर परिसर में तैयारी का कार्य तेज़ी से चल रहा है और पूरे क्षेत्र में धार्मिक उत्साह का माहौल है।

मंदिर के महंत पंडित राजनाथ तिवारी के अनुसार कुंभाभिषेक हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। इस दौरान मंदिर के जीर्णोद्धार, रंगरोगन और संरचना के नवीनीकरण से जुड़े सभी पारंपरिक अनुष्ठान दक्षिण भारतीय पद्धति से संपन्न कराए जाते हैं। यह आयोजन नाटकोट्टम क्षत्रम नामक दक्षिण भारत की प्रतिष्ठित धार्मिक संस्था द्वारा करवाया जाता है, जो सदियों से इस दायित्व को निभा रही है। संस्था के प्रबंधक ने बताया कि देशभर से हजारों श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बनने वाराणसी पहुंचेंगे।

इसके पूर्व 11 सितंबर को शिखर पूजन किया जा चुका है। अब 29 नवंबर की शाम को प्रथम याज्ञशाला का आयोजन होगा, जिसके बाद 30 नवंबर को सुबह और शाम दोनों समय यज्ञ, लक्षार्चन, सूक्त पाठ, कमकुमाभिषेक और अन्य प्रमुख धार्मिक विधियां संपन्न होंगी। मुख्य दिवस एक दिसंबर को कुंभाभिषेक होगा। इस दिन शिखर पर बंधे पवित्र धागे को गर्भगृह में स्थापित देवी विग्रह तक लाया जाएगा और देवी प्रतिमा में पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी, जिसे पूरे मंदिर को देवमय स्वरूप प्रदान करने की प्रक्रिया माना जाता है।

इस बीच मंदिर परिसर में कुछ मरम्मत कार्य अधूरे होने की वजह से चिंता भी व्यक्त की जा रही है। नालियों के ऊपर लगे संगमरमर के कई पत्थर टूटे पड़े हैं जिन्हें अब तक बदला नहीं जा सका है। मंदिर का प्राचीन लकड़ी का दरवाजा भी काफी क्षतिग्रस्त है, जिसके बदलने की मांग की गई थी, लेकिन उपलब्धता न होने के कारण कारीगर उसे रंगरोगन कर उपयोग के योग्य बनाने में लगे हुए हैं।

कुंभाभिषेक के दौरान स्थापना के लिए तमिलनाडु से नई देव प्रतिमाएं भी मंगाई गई हैं। इनमें मां कामाक्षी, मां मीनाक्षी, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की प्रस्तर प्रतिमाएं शामिल हैं। आयोजन के अंतिम चरण में इन प्रतिमाओं को विधिवत प्राण प्रतिष्ठा के साथ मंदिर परिसर के परिक्रमा पथ में स्थापित किया जाएगा।

यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि काशी और दक्षिण भारत की संयुक्त आध्यात्मिक संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करता है। श्रद्धालुओं को लंबे इंतजार के बाद इस महत्वपूर्ण समारोह का साक्षी बनने का अवसर मिल रहा है।

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