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वाराणसी: देसी शराब ठेके के खिलाफ महिलाओं का उग्र प्रदर्शन, छठे दिन भी जारी

वाराणसी: देसी शराब ठेके के खिलाफ महिलाओं का उग्र प्रदर्शन, छठे दिन भी जारी

वाराणसी के दुर्गाकुंड में शराब ठेके के खिलाफ महिलाओं का प्रदर्शन छठे दिन भी जारी, निवासियों ने धार्मिक स्थलों के पास ठेका खोलने का विरोध किया, पुलिस बल तैनात।

वाराणसी: दुर्गाकुंड स्थित घसियारी टोला क्षेत्र में प्रस्तावित देसी शराब ठेके के खिलाफ जनाक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। महिलाओं के नेतृत्व में स्थानीय निवासियों का विरोध लगातार छठवें दिन भी जारी रहा। रविवार को क्षेत्र की सैकड़ों महिलाएं सड़क पर उतर आईं और ठेके के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि धार्मिक और शैक्षणिक परिवेश वाले इस संवेदनशील क्षेत्र में शराब ठेका किसी भी हाल में मंजूर नहीं है।

प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि पहले यह ठेका केवलधाम क्षेत्र में खोला गया था, लेकिन वहां भी विरोध के चलते उसे बंद करना पड़ा। अब प्रशासन उसे घसियारी टोला जैसे घनी आबादी वाले इलाके में शिफ्ट करने की तैयारी कर रहा है, जो और भी आपत्तिजनक है। इस मार्ग से न केवल बच्चे और महिलाएं बड़ी संख्या में प्रतिदिन गुजरते हैं, बल्कि यह रास्ता संकट मोचन मंदिर, दुर्गाकुंड मंदिर, मानस मंदिर और त्रिदेव मंदिर जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों से होकर भी जाता है। ऐसे में किसी भी तरह से इस जगह पर शराब ठेके का खुलना स्वीकार नहीं किया जा सकता।

इस विरोध प्रदर्शन की सूचना मिलते ही एसीपी भेलूपुर के नेतृत्व में भारी संख्या में पुलिस बल मौके पर तैनात कर दिया गया। महिला फोर्स के साथ इंस्पेक्टर भेलूपुर भी प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे और स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की। हालांकि प्रदर्शनकारी महिलाएं पूरी तरह शांतिपूर्ण लेकिन अपने रुख पर अडिग रहीं। उन्होंने जिला प्रशासन से आग्रह किया कि ठेके को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए और भविष्य में ऐसे किसी कदम से पहले स्थानीय जनभावनाओं का सम्मान किया जाए।

प्रदर्शनकारियों में मदन लाल मौर्या, अंकित राय, रमेश भारती, सरोजा, सोना, रीता भारती, आशा देवी, शुभावती देवी, मुन्नी देवी, चांदनी और अनिता सहित सैकड़ों महिलाएं शामिल रहीं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने शीघ्र ही कोई निर्णय नहीं लिया तो वे आंदोलन को और व्यापक स्वरूप देने के लिए बाध्य होंगी।

स्थानीय महिलाओं का यह संघर्ष अब महज एक ठेके के खिलाफ नहीं बल्कि सामाजिक सुरक्षा, सांस्कृतिक मर्यादाओं और धार्मिक परिवेश की रक्षा का प्रतीक बनता जा रहा है। बढ़ते जनविरोध को देखते हुए प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई है कि वह कैसे विकास और स्थानीय भावनाओं के बीच संतुलन बनाए। वहीं दूसरी ओर, क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की चुप्पी को लेकर भी लोगों में नाराजगी बढ़ रही है।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आबकारी नीतियों के क्रियान्वयन में स्थानीय जनसंवेदनाओं और सामाजिक संरचना को क्यों नजरअंदाज किया जाता है। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस विरोध को कितनी गंभीरता से लेता है और इसका क्या समाधान सामने आता है। फिलहाल, घसियारी टोला की महिलाओं का यह आंदोलन लगातार सुर्खियों में है और क्षेत्रीय मुद्दों में एक बड़ा राजनीतिक रंग भी ले सकता है।

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