Thu, 30 Oct 2025 16:31:41 - By : Yash Agrawal
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 दिसंबर 2007 को रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए आतंकी हमले के मामले में एक अहम फैसला सुनाते हुए चार आरोपियों को राहत दी है। अदालत ने सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को रद्द कर दिया है। इस फैसले के साथ ही अब चारों आरोपियों की मौत की सजा निरस्त हो गई है, जबकि मामले से जुड़ी अन्य कानूनी कार्यवाही आगे बढ़ेगी।
यह मामला करीब अठारह साल पुराना है, जब रामपुर में स्थित सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर आतंकियों ने ए के 47 राइफल और ग्रेनेड से हमला कर दिया था। इस हमले में सात जवान शहीद हो गए थे, जबकि एक रिक्शा चालक की भी मौके पर मौत हो गई थी। हमले के बाद उत्तर प्रदेश एसटीएफ और पुलिस ने व्यापक जांच शुरू की और कई संदिग्धों को हिरासत में लिया था।
सेशन जज रामपुर ने 2 नवंबर 2019 को इस मामले में फैसला सुनाया था। अदालत ने चार आरोपियों मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख को फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं, जंग बहादुर को उम्रकैद की सजा दी गई थी। जबकि मोहम्मद कौसर और गुलाब खान को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था।
आरोपियों ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 4 सितंबर 2025 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब सुनाया गया। अदालत ने कहा कि फांसी की सजा रद्द की जाती है, और अब मामले से संबंधित अन्य कानूनी पहलुओं की समीक्षा की जाएगी।
मामले की जांच के दौरान कुल 38 गवाहों की गवाही दर्ज की गई थी। जांच में यह भी सामने आया कि हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी। मुख्य साजिशकर्ता सैफुल्लाह को 18 मई 2025 को पाकिस्तान में मार दिया गया था। वहीं, एसटीएफ ने इस घटना में शामिल कई अन्य व्यक्तियों को भारत के अलग-अलग राज्यों से गिरफ्तार किया था।
गिरफ्तार आरोपियों में पाक अधिकृत कश्मीर के निवासी इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख, मुंबई के गोरेगांव निवासी फहीम अंसारी, बिहार के मधुबनी के सबाउद्दीन, प्रतापगढ़ के कौसर, बरेली के गुलाब खान, मुरादाबाद के जंग बहादुर उर्फ बाबा खान और रामपुर के मोहम्मद शरीफ शामिल थे। इनमें से कुछ लखनऊ और बरेली की जेलों में बंद हैं।
घटना के बाद रामपुर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी। जिलाधिकारी आन्जनेय कुमार सिंह ने बताया कि अदालत का फैसला आने के मद्देनजर सुरक्षा व्यवस्था को और भी मजबूत किया गया है। कोर्ट परिसर और महत्वपूर्ण सरकारी स्थलों पर सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटा जा सके।
यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है बल्कि इसने न्याय व्यवस्था और सजा के मानकों पर भी गंभीर चर्चा को जन्म दिया है। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि सजा का निर्धारण केवल घटनाओं की गंभीरता पर नहीं बल्कि प्रमाणों और निष्पक्ष जांच पर आधारित होना चाहिए।