इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की गलत व्याख्या पर चिंता जताई

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में सुप्रीम कोर्ट के जमानत निर्देशों की गलत व्याख्या पर चिंता जताते हुए स्पष्टीकरण दिया।

Thu, 13 Nov 2025 11:20:07 - By : Tanishka upadhyay

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अक्सर गलत व्याख्या की जाती है, जिसके कारण निचली अदालतों में जमानत से जुड़ी प्रक्रिया में भ्रम की स्थिति बन जाती है। कोर्ट ने सभी न्यायिक अधिकारियों को सलाह दी है कि जमानत से जुड़े मामलों में इस महत्वपूर्ण फैसले का गंभीरता से अध्ययन करते हुए सही तरीके से लागू किया जाए।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब उन्होंने फिरोजाबाद निवासी कृष्णा उर्फ किशन की जमानत मंजूर की। याची पर गैर इरादतन हत्या के प्रयास का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि आरोपपत्र दाखिल हो चुका है और आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, ऐसे में आगे उसकी हिरासत की जरूरत नहीं है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देश केवल उन परिस्थितियों में लागू होते हैं जब मामले में अंतिम पुलिस रिपोर्ट यानी आरोपपत्र दाखिल हो चुका हो। जांच के दौरान दायर जमानत याचिकाओं पर यह दिशा निर्देश लागू नहीं होते।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि उन अभियुक्तों को जमानत दी जा सकती है जिन्हें विवेचना के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया और बाद में आरोपपत्र दाखिल कर दिया गया। हाई कोर्ट ने इसी आधार पर यह दोहराया कि जिला अदालतों को भी ऐसे मामलों में स्पष्टता रखनी चाहिए।

मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि मेडिकल और पुलिस रिपोर्ट में कई स्तर पर गंभीर गड़बड़ियां की गईं। पीड़ित की प्रारंभिक मेडिकल रिपोर्ट में सीटी स्कैन में सिर में फ्रैक्चर पाया गया था, जोकि धारा 307 के गंभीर अपराध में आता है। इसके बावजूद लगभग एक माह बाद हुए एक्स रे में फ्रैक्चर नहीं बताया गया। कोर्ट ने इसे लापरवाही और जांच को कमजोर करने वाला कदम माना।

न्यायालय ने कहा कि चिकित्सक ने पूरक रिपोर्ट देने से इन्कार कर दिया और विवेचना अधिकारी ने भी इस स्थिति की सूचना उच्च अधिकारियों को नहीं दी। इसके बजाय उन्होंने कम गंभीर धारा 308 में आरोपपत्र दाखिल कर दिया। कोर्ट ने इसे गंभीर त्रुटि माना और कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस और मेडिकल अधिकारी की लापरवाही न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करती है।

हाई कोर्ट ने चेतावनी दी कि पुलिस द्वारा साक्ष्य में छेड़छाड़ और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की गलत व्याख्या निचली अदालतों के लिए कठिनाइयां पैदा करती हैं। न्यायालय ने कहा कि आपराधिक न्याय व्यवस्था तभी प्रभावी रह सकती है जब सभी लोकसेवक अपनी जिम्मेदारियां ईमानदारी और सावधानी से निभाएं।

न्यायमूर्ति देशवाल ने आदेश की प्रति लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान को भेजने का निर्देश दिया, ताकि न्यायिक अधिकारियों को 2022 के इस महत्वपूर्ण फैसले के संबंध में सही जानकारी दी जा सके। अदालत ने कहा कि प्रशासन में सत्यनिष्ठ अधिकारियों को बढ़ावा देना और अकर्मण्यता को दूर करना उच्च अधिकारियों का कर्तव्य है, तभी जनता का विश्वास न्याय व्यवस्था में बरकरार रह सकता है।

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